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374 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
ज्ञानात्मा में शेष दो तत्वों का। उपयोग के शुभ, अशुभ, शुद्ध तीन भेद हैं। अतः उपयोग आत्मा में बटलर के नैतिक अन्तरात्मावाद का संपूर्ण सिद्धान्त समा जाता है।
मार्टिन्यू का सहजज्ञानवाद-बटलर के सिद्धान्त को मार्टिन्यू ने सूक्ष्मतम सीमा तक आगे बढ़ाया और उसमें मनोवैज्ञानिकता का समावेश किया। मार्टिन्यू (Martineau) ने अपने नैतिक सिद्धान्त को इडियो साइकोलोजिकल (Idio psychological) कहा। यह सिद्धान्त पर्याप्त सीमा तक नैतिक इन्द्रियवाद के समान है। किन्तु इसकी विशेषता यह है कि मार्टिन्यू सर्वप्रथम कर्म की प्रेरणाओं का मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत करता है और फिर उन्हीं प्रेरणाओं का नैतिक वर्गीकरण करता है। जिससे सत्-असत् का निर्णय किया जा सकता है। ____ मार्टिन्यू ने (1) प्राथमिक और (2) गौण-इस प्रकार से दो तरह के कर्म-प्रेरक स्वीकार किये हैं और फिर प्राथमिक कर्म प्रेरकों का चार प्रकारों में विभाजित किया है
(1) प्राथमिक प्रवर्तक-क्षुधा, मैथुन आदि पाशविक प्रवृत्तियां और आराम की प्रवृत्ति।
(2) प्राथमिक विकर्षण-द्वेष, क्रोध, भय आदि की प्रवृत्तियां। (3) प्राथमिक आकर्षण-राग, वात्सल्य, समाज-प्रेम आदि। (4) प्राथमिक भावनाएं-जिज्ञासा, विस्मय आदि। गौण कर्म प्रेरक के भी चार प्रकार उसने बताये हैं(1) गौण प्रवृत्तियां-स्वादप्रियता, लोभ, मद आदि। (2) गौण विकर्षण-मात्सर्य, प्रतीकार, शंका आदि। (3) गौण आकर्षण-स्नेह, करुणा आदि। (4) गौण भावनाएं-आत्म सुधार, सौन्दर्य की उपासना, धर्मनिष्ठा आदि।
इनको तरतमभाव की अपेक्षा 13 वर्गों में उसने विभाजित किया है। जैन दर्शन में जो संज्ञाओं की स्थिति बताई गई है, मार्टिन्यू का सिद्धान्त उसके काफी निकट है। संज्ञाओं को नीतिशास्त्र के दृष्टिकोण से कर्म के स्रोत कहा जा सकता है। ये अनुभव अथवा चेतना, संवेदना, संज्ञा, सोलह प्रकार की बताई गई हैंI. आचारांग-शीलांकवृति, पत्रांक 11। जैन ग्रन्थों में कही चार संज्ञा, कहीं दस संज्ञा व कहीं सोलह संज्ञाएं बताई हैं।