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जैन नीति और नैतिक वाद / 373
आत्मबलिदान और आत्मोपदेश के सुमन विकसित होते हैं । इन्हें नैतिक आदेश भी कहा जाता है और इन आदेशों के प्रति श्रद्धा ही कर्तव्य होते हैं ।
4. ईश्वरीय आदेश की अवस्था - वह है जिसमें नैतिक आदेश अनुल्लंघनीय हो जाते हैं और व्यक्ति उन्हें सर्वशक्तिमान ईश्वर के आदेश
समझकर उनका पालन करता है ।
5. चरित्र - निर्माण की अवस्था - में व्यक्ति सद्गुणों में साक्षीदार बन जाता है और इन गुणों के प्रति समर्पित हो जाता है।
इस प्रकार एडम स्मिथ ने सहानुभूति की व्याख्या नैतिक चरम की उच्च स्थिति तक पहुंचा दी है।
नैतिक अन्तरात्मावाद के प्रमुख प्रवर्तक जोजेफ बटलर हैं । इसने कहा है कि मानव प्रकृति के अनुरूप जो हैं, वे सद्गुण हैं और विपरीत दुर्गुण हैं। इसने मानव प्रकृति के चार तत्व बताये हैं - ( 1 ) वासना (passion ) ( 2 ) स्वप्रेम (self-love) (3) परहित ( benevolence ) ( 4 ) अन्तरात्मा (conscience)।
वासना के अन्तर्गत बटलर भावना ( affection) और क्षुधा (appetites) आदि प्रवृतियों को भी सम्मिलित कर लेता है । वासनाओं को वह अन्धी (rash) कहता है।
स्वप्रेम उसके अनुसार वह मानवीय प्रवृत्ति है जिसके कारण मानव जीवन भर सुख की अभिलाषा करता है। परहित का अभिप्राय दूसरों के लिए अधिकाधिक सुख का प्रयास करना है । यह सोच समझकर की जाने वाली वृत्ति है ।
अन्तरात्मा को बटलर ने बुद्धि का स्थायीभाव ( sentiment of reason) या हृदय का प्रत्यक्ष अनुभाव (perception of heart) बताया है और इसको निन्दा प्रशंसा करने वाली क्षमता ( faculty), नैतिक बुद्धि (moral reason) नैतिक इन्द्रिय (moral sense) और ईश्वरीय बुद्धि (divine reason) के रूप में वर्णित किया है।
बटलर ने अन्तरात्मा को औचित्य - अनौचित्य, शुभत्व - अशुभत्व का ज्ञान करने वाली और चिन्तन-मनन करने वाली शक्ति के रूप में स्वीकार किया है । जैनदर्शन ने भी आठ प्रकार की आत्मा मानी हैं । उनमें से कषाय आत्मा, ज्ञानात्मा, उपयोग आत्मा, योगात्मा और चारित्रात्मा नीति की दृष्टि से मननीय है । बटलर ने जो मानव प्रकृति के चार प्रकार के तत्व माने हैं, उनमें से कषायात्मा में वासना तत्व और स्वप्रेम तत्व का समावेश हो जाता है तथा