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________________ 370 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन जैन धर्म में भी इसके बीज मिल जाते हैं। आचारांग सूत्र में भगवान महावीर कहते हैं-मेरी आज्ञा में धर्म आणाए धम्मो है।' आदि सूत्र ईश्वरीय विधानवाद के ही समर्थक हैं। __वैदिक एवं जैन दृष्टि में अन्तर यह है कि वैदिक ईश्वर जहां एक परम सत्ता है, वहां जैन दृष्टि से ईश्वर एक देहधारी वीतराग पुरुष है, जो प्राणी मात्र के अत्यन्त हित व सुख के लिए नियम बनाते हैं। विधानवाद का दूसरा प्रमुख भेद आन्तरिक विधानवाद है। इसके अनुसार शुभ-अशुभ का निर्णय करने वाला अन्तरात्मा है। हेनरी मोर, वुडवर्थ, क्लार्क आदि पश्चिमी चिन्तक इस विचार धारा के समर्थक रहे हैं । आधुनिक युग में वेस्टरमार्क आदि नीतिचिन्तक इसके समर्थक हैं। भारत में भी अन्तरात्मावाद की परम्परा बहुत पुरानी है। महाभारत में कहा गया है कि सुख, दुख, प्रिय-अप्रिय, दान और त्याग सभी में अन्तरात्मा को प्रमाण मानना चाहिए। जैन धर्म में भी इसको स्वीकार किया गया है। वहां शुभ-अशुभ विहित-निषिद्ध कर्मों की सबसे बड़ी कसौटी मनुष्य का स्वयं का हृदय माना गया है। ___ अन्तरात्मावाद को Intuitonism भी कहा गया है। Intuition का अभिप्राय है-अन्तर्दृष्टि। अन्तर्दृष्टि के स्वरूप के विषय में मतभेद होने से इसके अनेक सम्प्रदाय हो गये हैं। क्लार्क आदि नीतिचिन्तकों ने अन्तरात्मा को बौद्धिक माना है। इनके अनुसार अन्तर्दृष्टि प्रज्ञा है तथा इसके निर्णय प्रातिभ होते हैं। यह कार्य की अच्छाई-बुराई को साक्षात् जानती है। इसका ज्ञान सहज और अपरोक्ष है। प्रज्ञावाद अथवा सहजज्ञान की अवधारणा उत्तराध्ययन सूत्र में भी प्राप्त होती है। कहा गया है-प्रज्ञा द्वारा धर्म की समीक्षा करके तत्व-अतत्व का निश्चय करना चाहिए। ___ आन्तरिक विधानवाद का दूसरा भेद नैतिक इन्द्रियवाद है। इस वाद के विचारकों में शेफ्ट्सबरी, हचिसन और रस्किन प्रमुख माने जाते हैं। इनके 1. आचारांग, 1/6/2/181 2. महाभारत, अनुशासन पर्वं, 113/9-10 3. उत्तराध्ययन सूत्र, 23/25
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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