SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन नीति और नैतिक वाद / 369 2. सामाजिक विधानवाद के अनुसार समाज के निर्णय ही नैतिक हैं और उनका उल्लंघन अनैतिक। प्रत्येक समाज की अपनी-अपनी परम्परा, रूढ़ि, मर्यादा आदि भिन्न-भिन्न होती हैं, और उन्हीं के अनुसार सामाजिक विधान भी होते हैं। यद्यपि आधुनिक युग में समाज के बन्धन शिथिल हो चले हैं। किन्तु फिर भी इनकी नैतिक (Moral) मान्यता तो है ही; इस रूप में ही सही, व्यक्ति इन विधानों का अनेक अवसरों पर आदर तो करता ही है। ___. राजनैतिक विधानवाद का अभिप्राय राष्ट्रीय अथवा राज्य के नियम उपनियमों से है। पहले राजा ही इन नियमों का नियामक होता था, अब प्रजातन्त्रात्मक शासन प्रणाली में प्रजा-प्रतिनिधि इन विधानों का निर्माण करते हैं विधानों का पालन नैतिकता माना जाता है और इन्हें भंग करना अनैतिकता। मनुष्य पर यह विधान बाध्यकारी होता है और इसको भंग करने पर दण्ड दिया जाता है। जहां तक इन तीनों प्रकार के विधानों का सम्बन्ध है जैन-नीति इन्हें मान्य करती है। ठाणांग सूत्र में दस प्रकार के धर्म बताये हैं, उनमें नगर धर्म, ग्राम धर्म, कुल धर्म, संघ धर्म आदि नैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। वहां भी इन धर्मों के पालन की प्रेरणा दी गई है। ___लौकिक धर्म (कुलधर्म, गणधर्म, संघधर्म, ग्रामधर्म, नगरधर्म) आदि के विषय में तो सोमदेव सूरि ने यह व्यवस्था दी है कि जहां तक सम्यक्त्व की हानि और व्रत दूषित न होते हों, जैनियों को सभी लौकिक विधियां मान्य करना चाहिए। ___4. ईश्वरीय विधानवाद तो सभी धर्मों/धर्मग्रन्थों में मिलता है। गीता का 'सर्व धर्मान् परित्यज्य, मामेकं शरणं ब्रज' इसी सिद्धान्त का समर्थन करता है। बाइबिल, कुरान शरीफ, वेद, पुराण, स्मृति आदि जितने भी धर्म ग्रन्थ हैं, सभी अपने नियमों को ईश्वरीय विधान बताते हैं। 1. स्थानांग, स्थान 10, सूत्र 760 2. सर्व एव हि जैनानां प्रमाणं लौकिको विधिः। यत्र सम्यक्त्व हानिन यत्र न व्रतदूषणम् ॥ -यशस्तिलक चम्पू, 8/34
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy