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जैन नीति और नैतिक वाद / 361
(2) सार्वजनीन सुख ही काम्य है ।
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यह दूसरी अवधारणा उपयोगितावाद के नाम से अभिहित की जाती है उपयोगितावाद के दो भेद किये जाते हैं- (1) प्राचीन अथवा स्थूल (Ancient or gross) उपयोगितावाद और (2) आधुनिक अथवा परिष्कृत (modern or refined) उपयोगितावाद ।
बैन्थम ने अपने नैतिक सिद्धान्त में स्थूल और परिष्कृत उपयोगितावाद का सामंजस्य करने का प्रयत्न किया है। इन दोनों में सादृश्य और वैभिन्न्य निम्न प्रकार हैं
1. दोनों का ही लक्ष्य सुख है ।
2. स्थूल सुखवाद (उपयोगितावाद ) निराशावादी था और परिष्कृत उपयोगितावाद आशावादी है ।
3. प्राचीन वैयक्तिक था और आधुनिक सार्वजनीन ।
4. आधुनिक सुखवाद (उपयोगितावाद) अधिक विकसित है।
बैन्थम के अनुसार उपयोगितावाद का अर्थ अधिक से अधिक व्यक्तियों का अधिक से अधिक सुख है । यह अर्थ इतना महत्वपूर्ण है कि इसे उपयोगिता सूत्र (formula or principle of utility) कहा जाता है। उपयोगिता सूत्र' के निम्न रूप मिलते हैं
1. अधिक के अधिक सुख (greatest happiness)।
2. उच्चतम सुख (maximum happiness) ।
3. अधिक से अधिक संख्या का अधिक से अधिक सुख ( greatest happiness of the greatest number) |
4. बहुसंख्यकों का सुख (happiness of majority )।
5. सार्वभौम सुख (universal happiness)।
6. सामान्य सुख (general happiness)।
7. सामाजिक सुख (social happiness)।
यहाँ उच्चतम सुख से यह अभिप्राय लिया जा सकता है कि इन्द्रिय-सुखों की अपेक्षा मानसिक सुख उच्च है और मानसिक से बौद्धिक तथा बौद्धिक से हार्दिक तथा आत्मिक सुख उत्तरोत्तर उच्च, उच्चतर, उच्चतम हैं।
1. संगमलाल पाण्डेय : नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण, पृ. 151.