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________________ 10 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन यही बात आंग्ल भाषा के नीतिसूत्र में कही गई है-Excess in everything brings bitter results. (किसी भी प्रकार की अति कटु परिणाम देती है।) ___यों दान अच्छी बात है, इसे मोक्ष का भी कारण माना गया है। नीति में भी दान की बहुत प्रशंसा की गई है। ज्ञानदान, अभयदान, औषधदान, श्रमदान, धनदान, प्रेमदान, भूदान, गोदान, तिलदान, तुलादान, आदि सैकड़ों प्रकार के दान प्रचलित और प्रशंसित हुए। मित्र बनाने का भी वह प्रमुख साधन है। राजनीति के चार स्तम्भों-साम, दाम, दण्ड, भेद-में भी दाम प्रमुख है। अंग्रेजी में भी कहावत हैMoney makes the mare go. (चांदी की कटारी जहां मारी, पार गई) लौकिक व्यवहार में भी दान प्रमुख भूमिका अदा करता है। इससे मानव को यश मिलता है, वह दानशूर कहलाता है। ___सामाजिक, राजनीतिक, पारिवारिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दान, सफलता, प्राप्ति की मूल और आधारभूत कुंजी है, नीति है। सर्वत्र इसकी सराहना होती है, कोई भी इसकी बुराई नहीं करता। ___ इतने पर भी 'अति' लगने से दान स्वयं दाता को ही हानिकारक हो जाता है, अतिदान के कारण मनुष्य अपना सर्वस्व स्वाहा कर देता है, घर का धन देकर स्वयं दर-दर का भिखारी बन जाता है। लोग उसे मूर्ख कहते हैं। _ 'आचार' जो समस्त जीवन और धर्मों का आधार है, केन्द्र है, यदि उसके साथ भी 'अति' लग जाये तो वह भी (अति+आचार) अत्याचार बन जाता है, जो प्रत्येक दृष्टि से गर्हित और निन्ध है। __अतिवादी (extremist) अथवा अति का आचरण करने वाला व्यक्ति मनोविज्ञान की भाषा में (abnormal) होता है। वह सामान्य मानवीय गुणों-बुद्धि, विवेक, दया, अनुकम्पा आदि से दूर जा पड़ता है। इसीलिए उसके द्वारा किये हुए कार्य परिणाम में पीड़ाकारक होते हैं। वह स्वयं तो दुःखी होता ही है दूसरों को भी दुःखी ही करता है। यही कारण है कि नीति में सदा-सर्वदा और सर्वत्र 'अति' को त्याज बताया है। अति की निन्दा की गई है और इसे दुर्नीति कहा गया है।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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