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नीतिशास्त्र की पृष्ठभूमि /9
यूरोप में उस समय तक विद्युत शक्ति का आविष्कार नहीं हुआ था, अनाज पीसने के लिए वहाँ पनचक्कियां ही साधन थे।
इन चक्कियों की रचना इस प्रकार की जाती थी-एक लम्बा लकड़ी का लट्ठा गाड़ा जाता था जो छत से काफी ऊपर निकला रहता था। वहां उसमें लकड़ी के दो आड़े तख्ते बाँधे जाते थे। बिलकुल ईसाई धर्म के प्रतीक क्रास (cross) जैसा आकार होता था इसका। वायु के वेग से ये घूमते तो बेल्ट (belt) द्वारा सम्बन्धित नीचे कमरे में लगी पुली (pulley) भी घूमने लगती और साथ ही चक्की भी चलने लगती, अनाज पिस जाता।
भरपूर वायु मिले और तख्ने तेज गति से घूमें इसलिए ये चक्कियां गाँव से बाहर खुले मैदानों में लगाई जाती थीं।
डान क्विक्जोट घोड़े पर सवार एक गांव के बाहर पहुंचा। उसने दूर से ही तख्ते घूमते देखे तो वह समझा-यह कोई राक्षस है और अपने लम्बे-लम्बे हाथों को घुमा रहा है। . उसके मस्तिष्क में विचार दौड़ा-यह राक्षस इस समीप के गांव को नष्ट करने की तैयारी कर रहा है। बस, फिर क्या था, उसने गांववासियों की रक्षा और राक्षस को नष्ट करने का निर्णय कर लिया। सेंको पांजा के समझाने पर भी न माना। म्यान से तलवार निकालकर टूट ही तो पड़ा।
परिणाम जो होना था, वही हुआ। लकड़ी के मोटे तख्तों का क्या बिगड़ना था? हाँ, डॉन क्विक्जोट का अवश्य बिगड़ गया। उसकी तलवार टूट गई। गहरी चोटें आई। महीनों बिस्तर पर पड़ा रहा। हंसी का पात्र बना।
यद्यपि डॉन क्विक्जोट की भावना बुरी नहीं थी; किन्तु संवेगों में बह जाने के कारण उसका कार्य अनुचित तो था ही, मूर्खतापूर्ण भी था। अति : दुर्नीति अति को भारतीय नीतिशास्त्र में सर्वत्र बुरा कहा गया है
अतिदानात् बलिर्बद्धः मानाधिक्यात् सुयोधनः।
विनष्टो रावणो मोहात् अति सर्वत्र वर्जयेत॥ -अत्यधिक दान देने से बलि बांधा गया, मान की अधिकता के कारण सुयोधन (दुर्योधन) और अधिक मोह करने के कारण रावण-इन दोनों का नाश हुआ। इसलिए 'अति' (extremity) सदा ही निषिद्ध है।