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आत्म-विकास की मनोवैज्ञानिक नीति / 347
सम्यक्त्व का आस्वादन रहता है. इस अपेक्षा से इस गुणस्थान को सास्वादन कहा गया है।
असादन का अर्थ विराधना है। सम्यक्त्व की विराधना करके जीव जब पतित होता है, तब उसे सासादन (स + आसादन) कहा गया है।'
इस गुणस्थान की उपमा वृक्ष से टूटे फूल से दी गई। जैसे फल वृक्ष से विलग होकर भूमि की ओर गिर रहा है, अभी तक भूमि पर पहुंचा नहीं है, भूमि का स्पर्श नहीं किया, गिर रहा है, उतना समय (period of down fall) ही इस गुणस्थान का माना गया है, जो शास्त्रों के अनुसार 6 अवलिका मात्र है।
नीति की दृष्टि से 'सासादन' और 'सास्वादन' दोनों ही शब्द महत्वपूर्ण हैं। इसका अभिप्राय यह है कि नीति (सुनीति/धर्मनीति) की भूमिका पर पहुंचकर भी उसकी विराधना कर देना, त्याग देना, उस स्थिति से पतित हो जाना।
इस गुणस्थान का काल इतना अल्प है कि नीति की दृष्टि से विवेचना का कोई अर्थ ही नहीं हो सकता। 3. मिश्र गुणस्थान (भटकता विश्वास)
जिस आत्मा का विश्वास सम्यक् और मिथ्या-दोनों प्रकार के भावों से मिश्रित होता है, वह मिश्रदृष्टि कहलाता है। __वस्तुतः यह गुणस्थान भी विकास का न होकर पतन का है। सम्यक्त्व से गिरने पर इस गुणस्थान की प्राप्ति होती है और तब भी जीव इस गुणस्थान पर पहुंच सकता है जब सम्यक्त्व प्राप्त करके मिथ्यात्वी बन गया हो और फिर मिथ्यात्व से उन्नति करके इस स्थान पर पहुंचा हो।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह स्थान बोधात्मा और अबोधात्मा के मध्य झूलना (oscillating) है। अबोधात्मा अथवा अहं व्यक्ति को भोगों की ओर
1. आसादनं सम्यक्त्वविराधनं, सह आसादनेन वर्तत इति सासादनो विनाशित सम्यग्दर्शननोऽप्राप्तमिथ्यात्वकर्मोदय जनित परिणामो मिथ्यात्वाभिमुखः सासावन इति भण्यते।
-षट्खंडागम, धवलावृत्ति,प्रथम खण्ड, पृ. 163 2. एक मुहूर्त (48 मिनट) में 16777216 आवलिकाएं होती हैं।
-मुनि सुखलाल : साधना का सोना, विज्ञान की कसौटी, पृ. 96 3. मिश्रकर्मोदयाज्जीवे सम्यग्मिथ्यात्वमिश्रितः। यो भावोऽन्तर्मुहूर्त स्या-तन्मिश्रस्थानमुच्यते ॥
-गुणस्थान क्रमारोह, 13