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नैतिक चरम / 323
स्वाध्याय धर्म सम्बन्धी कर्तव्य भी हैं और नीति में भी सद्ग्रन्थों का स्वाध याय आवश्यक है । आत्मा के अध्ययन के रूप में व्यक्ति स्वयं के अन्दर छिपी पड़ी अनैतिकताओं का शोधन करता है, उन्हें निकाल फेंकता है, उन्मूलन कर देता है।
स्वाध्याय का नैतिक और धार्मिक दृष्टि से सबसे बड़ा लाभ चित्त-वृत्तियों का शोधन और मन का एकाग्र होना है
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11. ध्यान-ध्यान शब्द बहुत व्यापक है । इसका प्रयोग धर्मशास्त्रों में भी होता है, योग - मार्ग में भी और साधारण बोलचाल में भी, जैसे सरलता से कह दिया जाता है - तुमने अमुक बात का ध्यान नहीं रखा; तुम मेरा बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते हो, अगर तुमने ध्यान रखा होता तो तुम्हारी पाकिट से पर्स न गिरता या जेब न कटती । इस प्रकार के वाक्य साधारण बोलचाल की भाषा में प्रयोग कर ही दिये जाते हैं।
योगशास्त्र में ध्यान का अर्थ बहुत गहरा है, वहां मन-वचन काय - तीनों योगों की अकंप दशा को ध्यान' कहा गया है । लगभग यही स्थिति धर्म साधना और धर्माचार के सन्दर्भ में भी है ।
किन्तु नीतिशास्त्र इस विषय में इतनी गहराई में नही जाता । ध्यान का वह इतना ही अभिप्राय मानता है कि मन स्थिर और शान्त रहे, तथा बुद्धि में नई-नई स्फुरताएं हों, और यह स्थिति शुभत्व की ओर मन ( mind) की स्थिरतापूर्वक लगनशीलता से प्राप्त होती है।
इस दृष्टि से, जैसाकि धर्मशास्त्रों, आचारशास्त्रों और यहां तक कि मनोवैज्ञानिकों (psychologists) द्वारा भी वर्णित है, ध्यान के दो भेद होते हैं - (1) दुर्ध्यान और (2) सुध्यान । नीतिशास्त्र भी इस धारणा से सहमत है। यहां सुध्यान को good attention और दुर्ध्यान को bad attention कहा जा सकता है । धर्मशास्त्रों में इन दोनों ध्यानों के दो-दो भेद और बताये गये हैं । दुर्ध्यान के दो भेद हैं- (1) आर्तध्यान और (2) रौद्रध्यान 1
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1. (क) तत्वार्थ सूत्र, 9, 20
(ख) आवश्यक नियुक्ति, 1456, 63, 67, 68, 74, 76, 77, 78 आदि गाथाएं । (ग) पातंजल : योगशास्त्र, 3 2 आदि सूत्र ।
(घ) ध्यानशतक आदि ग्रन्थ
2. Ethics regards attention as to enhance the intelligence, rather say, creative intelligenee which can be attained by steady application of mind to good. -William Geddie