SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नैतिक चरम / 315 इसी कारण श्रमण के नैतिक-धार्मिक गुणों में परीषह-उपसर्गों को समतापूर्वक सहन करना आवश्यक बताया गया है। द्वादश अनुप्रेक्षाएँ 'अनुप्रेक्षा' का अर्थ है-बार-बार देखना, गहराई से देखना, सूक्ष्मता से देखना, उस पर चिन्तन मनन करना और अपनी पूर्व असंगत धारणाओं को चिन में से निकालकर सत्य तथ्य को मन-मस्तिष्क में दृढ़ीभूत कर लेना। जैनशास्त्रों के अनुसार इन भावनाओं की संख्या बारह है। (1) अनित्यानुप्रेक्षा-इन्द्रियों के विषय, धन-यौवन और यहां तक कि अपने शरीर की अनित्यता-क्षणभंगुरता पर चिन्तन करना। (2) अशरणानुप्रेक्षा-धन-वैभव, परिवारीजन आदि कोई भी मेरा रक्षक नहीं है। मृत्यु, रोग आदि से कोई भी रक्षा नहीं कर सकता। (3) संसारानुप्रेक्षा-इस सम्पूर्ण संसार के सभी प्राणी दुःखी हैं। कोई धन के अभाव में दुःखी है तो किसी को धनाधिक्य के कारण उसे छिपाने की चिन्ता सता रही है। रोग, भय, व्याधि आदि अनेक प्रकार के दुःख हैं, मनुष्य अथवा कोई भी प्राणी सुख की सांस भी नहीं ले पा रहे हैं। (4) एकत्वानुप्रेक्षा-मेरी आत्मा अकेली ही है, यही शाश्वत है और अन्य सभी संयोग अस्थायी हैं। (5) अन्यत्वानुप्रेक्षा-यह धन, कुटुम्ब-परिवार आदि सभी सांसारिक वस्तुएं अन्य हैं और मैं इनमें भिन्न-पृथक हूं। (6) अशुचिअनुप्रेक्षा-यह शरीर अशुचि है, निन्दित पदार्थों से भरा है, रक्त, मांस, अस्थि आदि से भरा है, सिर्फ ऊपरी चमड़ी की सुन्दरता दिखाई देती है, वास्तव में इसमें सुन्दरता है ही नहीं। इसके प्रति मोह, स्नेह आदि रखना व्यर्थ है। (7) आस्रवानुप्रेक्षा-आस्रव का अभिप्राय है कर्मों का आगमन किस प्रकार की विचारधाराओं, वचन बोलने और कायिक प्रवृत्तियों से होता है, उन पर चिन्तन-मनन करना। (8) संवरानुप्रेक्षा-इन आते हुए कर्मों को रोकने के उपायों पर विचार करना। 1. अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुचित्वास्रवसंवरनिर्जरालोकबोधिदुर्लभस्वाख्यात तत्वानुचिन्तमनुप्रेक्षा। -उमास्वाति : तत्वार्थ सूत्र, अध्याय 9, सूत्र 7
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy