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________________ 312 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन 3भी श्रेय मार्ग है और उस मार्ग को जानकर ही उसका आचरण किया जा सकता है। ___अतः नीति के अनुसार भी नैतिक आचरण के लिए यह तीनों सम्पन्नताएं आवश्यक हैं। (26-27) वेदना और मारणान्तिक समाध्यासना सभी प्रकार की वेदनाओं, कष्टों, पीड़ाओं और यहां तक कि मृत्यु को भी समभावपूर्वक भोगना, स्वीकारना, वेदना और मारणान्तिक समाध्यासना कहलाती है। वेदनाओं को जैनागमों में परीषह नाम देकर 22 भेदों में वर्गीकृत किया गया है। बाईस परीषहों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है (1-2) क्षुधा-पिपासा परीषह-भूख और प्यास की तीव्र वेदना से कंठगत प्राण हो जाने पर भी श्रमण नियमविरुद्ध (अकल्पनीय) भोजन, पानी ग्रहण नहीं करता, समभाव से इन वेदनाओं को भोगता है। (3-4) शीत-उष्ण परीषह-अधिक ठण्ड पड़ने पर, शीत से रक्षा के निमित्त वह मर्यादा से अधिक वस्त्र रखने की इच्छा नहीं करता और न ही अग्नि से शरीर गर्म करने की भावना ही करता है, यहां तक कि सूर्य ताप में भी बैठने अथवा खड़े होने की आकांक्षा उसके मन में नहीं आती है। इसी प्रकार अधिक गर्मी पड़ने पर वह पंखे आदि से हवा नहीं करता, शरीर को शीतलता पहुंचाने की इच्छा भी नहीं करता। इन दोनों प्रकार के परीषहों को समभाव से सहन करता है। (5-6) दंश-मशक परीषह-डाँस, मच्छर आदि क्षुद्र जन्तुओं के कारण होने वाली पीड़ा को समभाव से सहना, उनके प्रति मन में भी दुर्भाव न लाना, न उन्हें पीड़ित-प्रताड़ित करना। 1. सामायिकच्छेदोपस्थाप्यपरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसंपराययथाख्यातानि चारित्रम्। -तत्वार्थ सूत्र, 9, 18 2. (क) समवायांग, समवाय 22, सूत्र 1 (ख) उत्तराध्ययन सूत्र, अ. 2, परीषह प्रविभक्ति अध्ययन (ग) तत्वार्थ सूत्र 9/9
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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