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नैतिक चरम / 307
आचार्य जिनभद्रगणी क्षमा श्रमण ने इसका दस भेदों में वर्गीकरण किया है। किन्तु ये सभी भेद श्रावक की अपेक्षा से हैं। श्रमण इस प्रकार को कोई भी परिग्रह नहीं रखते हैं। __ गृहस्थ के लिए ये बाह्य परिग्रह बन्धन के कारण होते हैं, क्योंकि आन्तरिक इच्छा के कारण वह इनका संग्रह करता है।
लेकिन श्रमण, चूंकि अन्तरंग परिग्रह का पूर्ण त्यागी होता है, अतः उसके आवश्यक उपकरण बन्धनकारी नहीं होते, अपितु डा. कमलचन्द्र सौगानी के शब्दों में-“जिस प्रकार शुद्ध भावों के अभाव में शुभभाव श्रमण-जीवन में चमक-दमक उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार बाह्य उपकरण भी। और उत्तराध्ययन सूत्र में तो बाह्य उपकरणों को प्रयोजन ‘जनता की प्रतीति' 'संयम यात्रा का निर्वाह' और “मैं साधु हूं इस प्रकार का बोध" बताया है।
इस दृष्टि से श्रमण 14 प्रकार के उपकरण रख सकता है।
नीति की दृष्टि से श्रमण के लिए अन्तरंग परिग्रह का त्याग अधिक महत्वपूर्ण है। (6-10) पाँच इन्द्रियनिग्रह ___ ज्ञान और अनुभव प्राप्ति के साधन इन्द्रिय कहे जाते हैं। ये पाँच हैं-(1) स्पर्शेन्द्रिय-इसके द्वारा स्पर्श संबन्धी ज्ञान प्राप्त होता है। (2) रसनेन्द्रिय द्वारा विभिन्न प्रकार के रसों का आस्वाद लिया जाता है। (3) घ्राणेन्द्रिय
1. खेत्तं वत्थु धण छन्न संचओ मित्त संजोगी। जाण सयणासणाणि य, दासी दास च कुव्वयं ।।
-बृहत्कल्पभाष्य, 825 2. Just as the Shubhabhavas in the absence of Shuddhabhavas adorn the
life of the saint, so do these paraphernalia without any contradiction. --
Dr. K. C. Sogani : Ethical Doctrines in Jainism, p. 123 3. उत्तराध्ययन सूत्र, 23, 32 4. प्रश्नव्याकरण सूत्र, संवर द्वार, अध्ययन 5, के अनुसार मुनि के 14 उपकरण-(1) पात्र
(2) पात्र बन्ध (3) पात्र स्थापना (4) पात्र केसरिका (5) पटल (6) रजस्त्राण (7) गोच्छक, (8-10) विभिन्न नाप की 3 चादरें (11) रजोहरण (12) मुखवस्त्रिका (13) मात्रक और (14) चोल पट्टक। (ख) मूलाचार (14) के अनुसार मुनि (दिगम्बर) के परिग्रह का वर्गीकरण-(1) ज्ञानोपधि (स्वाध्याय के लिए शास्त्र आदि) (2) संयमोपधि (मयूरपिच्छी) (3) शौचोपधि (शरीर शुद्धि के हेतु जल-पात्र-कमंडलु) Quoted by, Dr. K.C. Sogani : Ethical Doctrines in Jainism, p. 123