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________________ 292 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन वाहन-त्याग में मूल रूप से अहिंसा की भावना है। वाहनों से छोटे जीव तो मरते ही हैं, किन्तु कभी-कभी एक्सीडेंट भी हो जाते हैं, जिससे पंचेन्द्रिय पशु तथा अनेक मानवों का जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। मानव या पंचेन्द्रिय पशु-पक्षी आदि को चोट पहुंचाना तो पश्चिमी नीतिविज्ञानी भी अनैतिक कार्य मानते हैं और आज तो विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि अग्निकाय के जीव होते हैं जिनकी हिंसा पचन-पाचन आदि कार्यों में हो जाती है। (10) उद्दिष्टभक्त त्याग प्रतिमा-इस प्रतिमा को धारण करने वाला श्रावक अपने निमित्त बने हुए आहार को भी ग्रहण नहीं करता। वह शिर के बालों का शस्त्र से मुण्डन कराता है, किन्तु गृहस्थाश्रम का चिह्न होने के कारण चोटी रखता है। वह किसी बात को पूछने पर यदि जानता है तो कहता है- 'मैं जानता हूं' और यदि नहीं जानता तो स्पष्ट कह देता है कि 'मैं नहीं जानता' । अर्थात् उसकी वृत्ति-प्रवृत्तियां बहत सहज एवं सरल हो जाती हैं, वह स्पष्टवादी बन जाता है। नैतिक दृष्टि से मानव का यह अति उच्च कोटि का गुण है। 'दिल में सफाई और होठों पर सचाई' किसी भी मानव की ऐसी विशेषता है, जिसके कारण वह उच्च नैतिक धरातल पर अवस्थिति हो जाता है। समाज उसे पूर्ण नैतिक मानने लगता है। उसकी नैतिकता उत्कर्ष पर पहुंच जाती है। (11) श्रमणभूत प्रतिमा-यह श्रवण-जीवन अथवा सर्व संग त्यागरूप शिक्षा की अवस्था है। इस प्रतिमा में श्रावक श्रमण के समान जीवन व्यतीत करता है। श्रमण के समान ही वह निर्दोष भिक्षा, प्रतिलेखन, स्वाध्याय, ध्यान, कायोत्सर्ग, समाधि में लीन रहता है। उसकी वेश-भूषा भी श्रमण के समान होती है और आचार-विचार आदि दैनिक चर्या भी। यह श्रावक जीवन के उच्चादर्शों का अन्तिम सोपान है। कालमर्यादा एवं अन्य विशेषतायें-प्रतिमाओं के पालन की कालमर्यादा भी निश्चित की गई है। यथा-पहली प्रतिमा एक मास की, दूसरी 2 मास की, तीसरी 3 मास की, चौथी 4 मास की, पांचवी 5 मास की, छठी 6 मास की, सातवीं 7 मास की, आठवीं 8 मास की, नौवीं 9 मास की, दसवीं 10 मास की, ग्यारहवीं 11 मास की। 1. तीर्थंकर, जीव विज्ञान विशेषांक, यह जीव (अग्निकाय के जीव) 785 सेलसियस तक जीवित रहते हैं और उससे अधिक ताप होने से परने लगते हैं।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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