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________________ 290 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन (5) नियम प्रतिमा-इस प्रतिमा में साधक प्रमुख रूप से पांच नियमों का पालन करता हैं (i) स्नान नहीं करना। (ii) धोती की लांग नहीं लगाना। (iii) रात्रि में भोजन (यहां तक पानी भी) नहीं पीना (iv) दिन में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना और रात्रि में भी यथासम्भव ब्रह्मचर्य का पालन करना। (v) एक माह में एक रात कायोत्सर्ग की साधना करना। नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण से इस प्रतिमा में आसक्ति त्याग(renunciation of lust) होता है। आसक्ति प्रमुखतया तीन प्रकार की होती है-1. कामासक्ति (lust of desire) 2. भोगासक्ति (lust of enjoyment) और 3. देहासक्ति (Infatuation to one's own body.) इच्छा अथवा आसक्ति (desire of will) नीतिशास्त्रीय प्रत्यय हैं। वह इच्छा जो अशुभ हो, हानिकारक हो, उसे अशुभ प्रत्यय कहा जाता है। इच्छाओं के वश में चलने वाला व्यक्ति नीति के चरम उत्कर्ष या आदर्श तक नहीं पहुंच पाता। काम-भोग में अधिक आसक्ति तथा अपने शरीर से अत्यधिक ममत्व नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी अनुचित है। इस प्रतिमा में इन्हीं का त्याग होता है। (6) ब्रह्मचर्य प्रतिमा-इसमें साधक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। वह ऐसा मनोविनोद या मजाक भी नहीं करता जो तनिक भी काम वासना की ओर संकेत करता हो, स्त्री के साथ एकान्त में बैठता भी नहीं, स्त्रियों से अधिक परिचय व संसर्ग भी नहीं करता। ब्रह्मचर्य आध्यात्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है तो नैतिक दृष्टि से भी इसका कम महत्व नहीं है। जितेन्द्रियता व्यक्ति को नैतिक चरम तक ले जाने का महत्वपूर्ण साधन है। जितेन्द्रियता अथवा वासना-नियन्त्रण सामाजिक दृष्टि से नैतिकता का मापदण्ड है। जितेन्द्रिय पुरुष को ही लोग नैतिक मानते हैं और उसी रूप में उसको सम्मान प्राप्त होता है। (7) सचित्तत्याग प्रतिमा-इस प्रतिमा को धारण करने वाला श्रावक जल के अतिरिक्त अन्य सभी सचित्त वस्तुओं का त्याग कर देता है। यह प्रतिमा वस्तुतः व्यक्तिगत आवश्यकताओं और इच्छाओं को सीमित
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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