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नैतिक उत्कर्ष / 285
अभावजनित कष्ट न झेलना पड़े, सबकी जरूरतें पूरी हो जायें और समाज में सर्वत्र समानता व्याप्त हो जाय ।
इसका परिणाम यह होगा कि अनैतिक वातावरण स्वयं समाप्त होकर नैतिक वातावरण को यथेष्ट अवसर प्राप्त होगा ।
इस प्रकार व्यक्तिगत दृष्टिकोण से देशावकाशिक व्रत मानव के जीवन में शांति लाता है और सामाजिक दृष्टिकोण से ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करता है, जिससे सम्पूर्ण समाज में सुख का वातावरण बनता है, वितरण व्यवस्था सुचारु रूप से चलती है तथा अशुभत्व के स्थान पर शुभत्व का प्रयोग प्रसार पाता है ।
पौषधोपवास व्रत
एक दिन-रात अथवा 24 घण्टे तक आहार, व्यापार और शरीर श्रंगार का त्याग करके ब्रह्मचर्यपूर्वक आत्मचिन्तन, धर्मध्यान आदि शुभ परिणति में लीन रहना पौषधोपवास व्रत है ।
साधक पौषधोपवास में स्वयं अपनी जीवन शैली का निरीक्षण-परीक्षण करता है। अपने सद्गुणों के विकास के साथ-साथ अपने दोषों का चिन्तन करके उन्हें निकालने का, दूर करने का विचार तो करता है किन्तु पराये अथवा किसी दूसरे व्यक्ति के दोषों का चिन्तन बिल्कुल नहीं करता । उसका प्रयास और प्रयत्न स्वयं अपने को सुधारने का होता है ।
स्वयं की कमजोरियों को जानना, उन्हें दूर करने का प्रयास करना, अपने आपका सुधार करना - स्वयं में एक बहुत बड़ा नैतिक आचरण है, अशुभत्व को त्यागकर शुभत्व की ओर गमन है ।
तथ्य यह है कि जब तक मनुष्य अपना स्वयं का तटस्थतापूर्वक आत्मालोचन नहीं करेगा तब तक वह अपने दोषों और कमजोरियों, अशुभाचरण को जान भी नहीं सकेगा, ऐसी स्थिति में वह नैतिक जीवन में प्रगति नहीं कर सकेगा ।
पौषधोपवास, वस्तुतः आत्म- पवित्रता की, आत्मा को दोषों से मुक्त करने की साधना है; और नीति भी तो यही है, वह भी व्यक्ति को बुराइयों (Evils) से बचने तथा अच्छाइयों (Good) की ओर बढ़ने की प्रगति करने की प्रेरणा देती है और साथ ही इस प्रगति का मार्ग भी सुझाती है ।