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________________ 284 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन सामायिक ____सामायिक एक आध्यात्मिक साधना है। इसमें समत्व भाव की साधना की जाती है। मन को, वचन को और शरीर को अनुशासित किया जाता है, धर्मध्यान में रमाया जाता है। यद्यपि सद्गृहस्थ समभाव की साधना केवल 48 मिनट तक करता है; किन्तु उसके जीवन व्यवहार पर उस साधना का बहुत गहरा असर होता है। वह शुभत्व की ओर अग्रसरित होता है। ___ शुभ एक नैतिक प्रत्यय है। सामायिक साधना से व्यक्ति के मन-वचन काय इनसे अनुशासित हो जाते हैं, उसका स्वयं के संवेगों पर इतना नियंत्रण हो जाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी उसका मानसिक संतुलन कायम रहता है, अन्य व्यक्ति अपमान-जनक व्यवहार कर दे तो भी वह आवेश में नहीं आता, वह अपने चित्त की शांति को भंग नहीं करता, शुभ भावों से ही स्वयं को ओत-प्रोत रखता है यही प्रयत्न करता है कि सामने वाला शांत हो जाय, अपने हृदय के आवेश को नियन्त्रित कर ले। यह स्थिति समाज में शांति और नैतिक वातावरण निर्मित होने में बहुत सहयोगी होती है। जितना-जितना इसका प्रसार होता है, उतना-उतना समाज में सुख का वातावरण बनता है। सामायिक साधक जब 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की भावना मन में भाता है तो उसका विचार प्रवाह तरंगायित होकर दूर-सुदूर क्षेत्रों तक प्रसरणशील बनकर अन्य प्रणियों के मन-मस्तिष्क में भी सुख की उर्मियाँ उत्पन्न कर देता है। यही सामायिक का नीतिशास्त्रीय महत्व है। देशावकाशिक व्रत देशावकाशिक व्रत में सद्गृहस्थ अपनी वृत्तियों को और भी नियंत्रित/संयत करता है, आवश्यकताओं को कम करता है। धर्मशास्त्रों के शब्दों में उसका सागर के समान पाप कम होकर बूंद के समान रह जाता है और नीतिशास्त्र के शब्दों में उसका स्वयं का जीवन सुखी होता है और साथ ही समाज में भी सुव्यवस्था का प्रसार होता है। गांधीजी के शब्दों में यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकताएँ स्वयं ही सीमित कर ले तो वर्ग संघर्ष को अवकाश ही न मिले, किसी को भी
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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