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नैतिक उत्कर्ष / 279
इन व्यवसायों को शास्त्रों में कर्मादान कहा गया है। कर्मादान का अभिप्राय है जिन कार्यों, व्यवसायों से अधिक और संक्लेशकारी, दुखदायी कर्मों का आगमन और संचय हो।
कर्मादान' अथवा निषिद्ध व्यवसाय का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया
(1) अंगारकर्म-अग्नि संबंधी व्यापार; जैसे-लकड़ी जलाकर कोयले बनाना और उन्हें बेचना।
(2) वनकर्म-वन काटना, घास काटना आदि का व्यापार। (3) शकटकर्म-वाहन निर्माण सम्बन्धी व्यापार। (4) भाटकर्म-वाहन किराये पर देकर आय उपार्जित करना।
(5) स्फोटकर्म-ऐसे व्यवसाय जिनमें भूमि को फोड़ना पड़ता है, जैसे खान खुदवाने का व्यवसाय।
(6) दंतवाणिज्य-हाथी दाँत आदि का व्यवसाय। (7) लाक्षावाणिज्य-लाख का व्यापार।
(8) रस वाणिज्य-मादक वस्तुओं; यथा-शराब आदि का व्यापार। इसी में आधुनिक युग में प्रचलित अफीम (Opium), हैरोइन, ब्राउन सुगर (Brown Sugar) आदि का व्यापार भी सम्मिलित है।
(9) केशवाणिज्य-बाल अथवा बाल वाले पशुओं का व्यापार।
(10) विषवाणिज्य-जहरीले पदार्थ एवं हिंसक अस्त्र-शस्त्रों का व्यवसाय।
(11) यन्त्रपीड़न कर्म-यन्त्र, साँचे, घाणी, कोल्हू आदि का व्यवसाय।
(12) निलाञ्छन कर्म-प्राणियों के अंग-उपांग, अवयव आदि छेदना, बैलों को नपुंसक बनाना आदि।
(13) दावाग्निदापन-वन में आग लगाना। (14) सरद्रह तडागशोषणता कर्म-जलाशय आदि को सुखाना।
(15) असतीजन पोषणता कर्म-दुर्बल चरित्र वाली युवतियों, कुमारियों, (society girls) आदि की नियुक्ति करके उनसे व्यभिचार कराके धनोपार्जन करना, असामाजिक तत्वों को संरक्षण देना, उनका पोषण करना, हिंसक पशुओं को पालना आदि। 1. योगशास्त्र, तृतीय प्रकाश, श्लोक 98-113 2. रसवाणिज्ये सुरादि विक्रयः। -उपासकदशा, टीका अभयदेव 1/6 पृ. 15-16