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________________ नैतिक उत्कर्ष / 273 तब नीतिपूर्ण आचरण करने वाला विवेकी व्यक्ति इस प्रकार का दोष अपने जीवन में कैसे लगा सकता है? वह ऐसा आचरण कभी नहीं करता। इस विषय में आचार्य आत्माराम जी महाराज का कथन काफी वजनदार है-अपनी वाग्दत्ता (जिसके साथ सगाई हुई हो, विवाह न हुआ हो) को भावी पत्नी मानकर उसके साथ गमन करना।' ऐसा ही मत श्री अमोलक ऋषि जी महाराज का है। यद्यपि नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण की अपेक्षा यह भी उचित नहीं ठहराया जा सकता; किन्तु धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण की अपेक्षा यह कम अनैतिक है। नैतिक व्यक्ति इस दोष को भी नहीं लगाता। (3) अनंगक्रीड़ा-मैथुन सेवन के प्राकृतिक अंगों के अतिरिक्त अन्य अंगो से काम-क्रीड़ा करना। इसमें हस्तमैथुन, गुदामैथुन आदि सभी प्रकार की विकृत काम-क्रीड़ाओं का वर्जन है। ____ पश्चिमी देशों में समलिंगी (Homo) मैथुन की जो दुष्प्रवृत्ति बढ़ रही है, नीतिशास्त्र इस प्रवृत्ति को निन्दनीय और सर्वथा हेय मानता है। (4) परविवाहकरण-सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से अपने पुत्रपुत्रियों का विवाह करना तो सद्गृहस्थ का दायित्व है; किन्तु उसे दूसरों के विवाह-सम्बन्ध करने अथवा कराने में अधिक दिलचस्पी नहीं लेनी चाहिए, वरपक्ष अथवा कन्यावक्ष को जोर नहीं देना चाहिए। ___ अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह तो नैतिक दृष्टि से भी उचित है, क्योंकि विवाह होने से उनको काम-पूर्ति का एक नैतिक मार्ग मिल जाता है अन्यथा उद्दाम-काम उन्हें अनैतिक भी बना सकता है। कुमार्ग और अनैतिकता की अंधेरी गलियों में भटका सकता है। किन्तु अन्यों के विवाह सम्बन्ध जोर देकर कराने के विपरीत परिणाम भी सामने आ सकते हैं। आधुनिक युग में दहेज दानव के कारण जो गृह कलह के अखाड़े बन रहे हैं, निर्दोष युवतियाँ अग्नि की भेंट चढ़ रही हैं। इन सब अनैतिकताओं के लिए मध्यस्थ भी उत्तरदायी ठहराया जाता है, उसकी सदाचारिता, ईमानदारी, नैतिकता भी शंकास्पद बन जाती है। अतः इस प्रकार के विवादास्पद, पारिवारिक, सामाजिक दायित्वों से सद्विवेकी गृहस्थ को दूर ही रहना श्रेयस्कर है। 1. आत्माराम जी महाराज : तत्वार्थसूत्र-जैनागम समन्वय, पृ. 170 2. अमोलक ऋषि जी महाराज : परमात्म मार्गदर्शक, पृ. 194
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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