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________________ ... नैतिक उत्कर्ष / 271 इसी प्रकार स्त्री भी स्व-पति में सन्तोष रखे, अन्य पुरुषों के प्रति विकारी भाव मन में भी न लाये। इतना ही नहीं, विवाहित पति-पत्नी भी संयम से रहें, जितना संभव हो सके, ब्रह्मचर्य का पालन करें। इसलिए इसे ब्रह्मचर्याणुव्रत भी कहा गया है। आगमों में पत्नी के लिए धर्मसहायिका, सहधर्मचारिणी आदि विशेषण प्रयुक्त हुए हैं। जनसाधारण में भी पत्नी के लिए 'धर्मपत्नी शब्द व्यवहत होता इसका अभिप्राय यह है कि पत्नी (विवाहित पत्नी) को पति की धर्म-साधना मे सहायक होना चाहिए। उसका कर्तव्य है कि वह पति को नीति मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे। ऐसी पत्नी ही धर्मपत्नी के गौरवमय पद से सुशोभित होती है। ब्रह्मचर्य अणुव्रत की साधना करने वाले सद्गृहस्थ को ऐसे सभी दृश्य देखने तथा क्रिया-कलापों से बचना चाहिए, जिनसे सेक्स सम्बन्धी कुत्सित भावनाएँ उत्तेजित होने की सम्भावना हो। ऐसी बातें अथवा निमित्त हैं।-(1) मद्य (2) मांस (3) द्यूत (4-6) उत्तेजक गीत, संगीत तथा नृत्य (7) शारीरिक श्रृंगार (8) उत्तेजक पदार्थ एवं दृश्य (9) स्वच्छन्दता एवं (10) निरुद्देश्य इधर-उधर घूमना, सैर-सपाटे करना। साथ ही उसे गरिष्ठ, दुष्पाच्य और तामसिक भोजन से भी बचना चाहिए; क्योंकि इनसे भी चित्त चंचल होता है। संभवतः इसीलिए महात्मा गांधी ने ब्रह्मचर्य (अणुव्रत) की साधना के लिए रसना इन्द्रिय का संयम आवश्यक बताया है। ___ ब्रह्मचर्य अणुव्रत के पांच अतिचार यह हैं (1) इत्वरिक परिगृहीतागमन-इत्वर का अभिप्राय है-अल्पकाल और इत्वरिक उस स्त्री को कहते हैं, जो कुछ काल के लिए पत्नी बनाकर रखी गई हो। ऐसी स्त्री रखैल (kept) कहलाती है। धन आदि का प्रलोभन देकर इस प्रकार की शिथिल चरित्रवाली स्त्रियों (Easy character girls) को रखा जा सकता है। यह अवधि कुछ भी हो सकती है। 1. Wine, meat, gambling, music including songs and dance, bodily decoration, intoxication, libertines and aimless wandering-are ten concomitants of sexual desire. -K.K. Handiqui : Yashastilaka and Indian culture, p.266-267
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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