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________________ नैतिक उत्कर्ष / 269 (2) जानबूझकर । अनजान में, पूरी जानकारी के बिना किसी को कोई सलाह दी जाय और वह गलत साबित हो, अथवा उस सलाह का परिणाम अनैतिक आचरण के रूप में आये तो वह अतिचार अथवा दोष है। जान-बूझकर किसी को गलत सलाह देना स्पष्ट झूठ है, नीति/व्रत विरुद्ध है। (5) कूटलेखक्रिया-झूठे दस्तावेज बनाना, किसी के जाली हस्ताक्षर बना देना, जाली हुण्डी, नोट, सिक्के आदि बनाना। यह पांचों ही अतिचार अनैतिक हैं। रहस्याभ्याख्यान, सहसाभ्याख्यान, स्वदारमन्त्रभेद-यह तीनों ही पारिवारिक विघटन और सामाजिक क्लेश की स्थिति का निर्माण करते हैं, पति-पत्नी में मनमुटाव हो जाता है, घर अशान्ति का अखाड़ा बन जाता है। मिथ्यापदेश कुमार्ग को बढ़ाता है और कूटलेखक्रिया से अन्य व्यक्तियों, समाज, राष्ट्र को हानि होती है। वैर-विरोध बढ़ता है। ___ यह सभी अशुभ प्रत्यय हैं, नीतिपूर्ण आचरण के विरोधी हैं। अचौर्याणुव्रत चोरी का लक्षण है-अदत्तादानं अस्तेयं--बिना दी हुई अथवा बिना अनुमति के किसी की भी वस्तु लेना चोरी है। यह चोरी किसी के घर में सैंध लगाकर, ताला तोड़कर, गांठ या जेब काटकर की जाती है और आधुनिक सभ्य तरीकों से भी। नीतिवान सद्गृहस्थ ऐसी कोई भी चोरी नहीं करता। यदि उसे कोई धन अथवा वस्तु मिल जाय और उसके स्वामी का पता लग जाय तो उसे लौटा देता है। उस वस्तु को अपने उपयोग में नहीं लेता; यदि स्वामी का पता न लगे तो सामाजिक कार्यों में लगा देता है। वह न स्वयं किसी प्रकार की चोरी करता है और न किसी दूसरे को चोरी की प्रेरणा देता है, अथवा चोरी करवाता है। चोरी करने, करवाने अथवा चोरी मे सहायक बनने के अनेक कारण हैं, यथा-(1) भोगों के प्रति आसक्ति, (2) यश-प्रतिष्ठा की भूख (3) धन संचय की भावना, (4) कम परिश्रम से अधिक धन उपार्जन की लालसा, (5) अपव्ययता आदि। यह कारण तो वैयक्तिक हैं। किन्तु कुछ ऐसे कारण भी आज की सामाजिक व्यवस्था में पैदा हो गये हैं, जिनकी वजह से मानव को चोरी करने
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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