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________________ नैतिक उत्कर्ष / 267 स्थूल झूठ' का अभिप्राय है-ऐसा मिथ्यावचन जो लोक में अपयश का कारण हो और सज्जनों द्वारा निन्दित हो; जिसके कारण मनुष्य समाज की दृष्टि में गिर जाय, घृणा का पात्र बने, समाज में विघटन की स्थिति पैदा हो और उसे अनैतिक समझा जाये। आगमों में असत्य' (मृषावाद) के पाँच रूप बताये हैं(1) कन्या अथवा वर के बारे में झूठ बोलना। (2) गाय (पशु धन) के विषय में झूठ बोलना। (3) भूमि (प्रॉपर्टी) के बारे में झूठ बोलना। (4) किसी की धरोहर को हजम करने के लिए मिथ्या बोलना। (5) झूठी साक्षी (गवाही) देना। इनके अतिरिक्त आत्म-प्रशंसा, पराई निन्दा, कटुवचन, विग्रह उत्पन्न करने वाले शब्द भी असत्य ही हैं। ये सभी लोकविरुद्ध, विश्वासघातजनक और पुण्य नाशक हैं। यहां कन्या से संपूर्ण मानव जाति उपलक्षित है। इसी प्रकार गाय से संपूर्ण पशु-पक्षी जगत और भूमि से जमीन तथा भूमि से प्राप्त होने वाले मणि-माणिक्य निधान, वनस्पति आदि भी अभिप्रेत हैं।। ____ यह पांचो घोर अनैतिकताएँ हैं। इनके परिणाम अति भंयकर होते हैं। वर अथवा कन्या के विषय में झूठ बोलना, गुणवती कन्या में दोष लगाना, वर की आमदनी अधिक बताना, अधिक दहेज का वचन देकर कम 1. (क) थूल मुसावायाओ वेरमणं, दुविहेणं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं। -उपासकदशांग, 1 (ख) थूलमलींक न वदति, न परान् वादयेत् सत्यमपि विपदे। यत्तद् वदन्ति सन्तः स्थूल मृषावाद वैरमणं ॥ -रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 55 2. (क) थूलगं मुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ, से य मुसावाये पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-कन्नालीए, गवालीए, भोमालीए, णासावहारे, कूडसक्खिज्जे। -उपासकदशा, 1/6, अभयदेयवृत्ति, पृ. 11 (ख) कन्या-गो-भूम्यलीकानि, न्यासापहरण तथा। कूटसाक्ष्यं च पचति, स्थूलासत्यान्यकीर्तयन् ॥ -योगशास्त्र, 2/55 3. सर्वलोक विरुद्धं यद् यद् विश्वसितघातकम्। यद् विपक्षस्य भूतस्य, न वदेत् तदसूनृतम् ॥ -योगशास्त्र, 2/55 4. तेन सर्वमनुष्यजाति विष्यमलीकमुपलक्षितम् । -आवश्यक सूत्र टीका
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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