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________________ 258 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन हृदय की स्वच्छता और उदारता तथा सेवा सहयोग की वृत्ति यह सभी शुभ प्रत्यय हैं, जो नैतिक उत्कर्ष के लिए आवश्यक हैं। ऐसा व्यक्ति ही अपने स्वीकृत व्रतों का परिपालन करता हुआ पूर्णरूप से नैतिक जीवन जीने में सक्षम होता है। श्रावक व्रत __ जैन शास्त्रों में श्रावक व्रतों की बहुत ही गहन-गम्भीर और विस्तृत विवेचना की गई है। इनके अध्यात्मिक, व्यावहारिक और नैतिक पक्ष पर भरपूर प्रकाश डाला गया है। आचार्यों ने इन व्रतों को तीन वर्गों में विभाजित किया है। 1. अणुव्रत 2. गुणव्रत 3. शिक्षाव्रत 1. अणुव्रत पाँच हैं-(1) अहिंसाणुव्रत (2) सत्याणुव्रत (3) अचौर्याणुव्रत (4) ब्रह्मचर्याणुव्रत और (5) अपरिग्रहाणुव्रत । 2. गुणव्रत तीन हैं-(1) दिशापरिमाणव्रत (2) उपभोग-परिभोग परिमाणव्रत और (3) अनर्थदण्डविरमणव्रत। 1. ग्रंथों में व्रती श्रावक के अन्य नाम भी प्राप्त होते हैं-जैसे (1) श्रमणोपासक-श्रमणों (साधु-साध्वियों) की उपासना करने वाला। (2) अणुव्रती-छोटे व्रतों का पालन करने वाला। (3) व्रताव्रती-व्रतों का आंशिक रूप से पालन करने से व्रती और पूर्णतया पालन की क्षमता के अभाव से अव्रती। (4) विरताविरत-भोगेच्छाओं का आंशिक रूप से त्यागी। (5) देशविरत-सांसारिक विषयों का आंशिक त्यागी। (6) देशसंयत-यथाशक्य संयम पालन करने वाला। (7) संयमासंयमी-कुछ अंश में संयमी और कुछ अंश में असंयमी। (8) श्राद्ध-देव-गुरु-धर्म के प्रति श्रद्धा रखने वाला। (9) उपासक-देव और धर्म की उपासना करने वाला। 2. स्थानांग (5/1)ए उपासकदशांग, आवश्यक सूत्र आदि अंग-आगम ग्रंथों में इन पाँचों अणुव्रतों के नाम इस प्रकार दिये गये हैं1. स्थूल प्राणातिपातविरमण 2. स्थूल मृषावाद विरमण 3. स्थूल अदत्तादान विरमण 4. स्वदार (स्वपत्नी) सन्तोषव्रत 5. इच्छापरिणाम व्रत।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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