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________________ 256 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन 'श्रावक' शब्द के एक-एक अक्षर का भी विशिष्ट अर्थ बतलाया है। श्रावक शब्द में तीन अक्षर हैं-'श्रा' 'व' और 'क' श्रा-वह तत्वार्थ चिन्तन द्वारा अपनी श्रद्ध भावना को सुदृढ़ करता है। व-सत्पात्रों में निरन्तर धनरूप बीज को बोता है। क-शुद्ध साधु की सेवा करके पापरूप धूलि को दूर फेंकता रहता है।' इनमें से 'श्र' का प्रतीकार्थ सच्चे और दृढ़ विश्वास को संकेतित करता है, 'व' दान की प्रेरणा देता है और 'क' सेवाधर्म के महत्त्व को प्रतिपादित करता है। श्रावक का तीसरा लक्षण दिया गया है(1) जो व्रतों का अनुष्ठान करने वाला है, (2) शीलवान है. (3) स्वाध्याय तप आदि गुणों से युक्त है, (4) सरल व्यवहार करने वाला है, (5) सद्गुरु की सेवा करने वाला है, (6) प्रवचन कुशल है, वह भाव श्रावक है। भाव का अभिप्राय है, जिसका अन्तर्तम श्रावकगुणों से ओत-प्रोत हो चुका है। श्रावक शब्द के तीनों अक्षरों का निर्वचन इस प्रकार भी किया गया है। श्रा-श्रद्धालु-सत्य-तथ्य पर दृढ़ विश्वास रखने वाला। 1. श्रद्धालुतां श्रातिपदार्थचिन्तनाद्, धनानि पात्रेसु वपत्यनारतम् । किरत्यपुण्यानि सुसाधु सेवना, दत्तोपि तं श्रावक माहुरुत्तमा ॥ और भी देखे -श्राद्धविधि, पृ. 72 श्लोक 3 श्रद्धालुतां श्राति, श्रणोति शासनम् । दानं वपेदाशु वृणोति दर्शनम् ॥ कृन्तत्यपुण्यानि करोति संयमम् । तं श्रावकं प्राहुरमी विचक्षणाः ।। 2. कयवयकम्मो तह सीलवं, गुणवं च उज्जु बबहारी। गुरु सुस्सूसो पवयण कुसलो खलु सावगो भावे॥ -धर्मरल प्रकरण, 33 3. शील का स्वरूप इस प्रकार है-1 धार्मिक जनों से युक्त स्थान में रहना, उनकी संगति करना, 2 आवश्यक कार्य के बिना दूसरे के घर न जाना 3 भड़कीली पोशाक नहीं पहनना 4 विकार पैदा करने वाले वचन न बोलना 5 द्यूत आदि न खेलना 6 मधुरनीति से कार्यसिद्धि करना। इन छह शीलों से युक्त श्रावक शीलवान कहलाता है। -श्री मधुकर मुनि : जैन धर्म की हजार शिक्षाएं, पृ. 108 –पाद टिप्पण
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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