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नैतिक उत्कर्ष (ETHICAL UPLIFTMENT)
श्रावक की आचार नीति
सुसंस्कृत, सुसभ्य, श्रेष्ठ आचरण युक्त व्यावहारिक जीवन नैतिक उत्कर्षता की ओर बढ़ता कदम है, ऐसा व्यक्ति शुभ (good) से परम शुभ (utmost good) की ओर बढ़ता है। साथ ही ऐसा सुन्दर नीतियुक्त व्यावहारिक जीवन आध्यात्मिक जीवन का प्रवेश-द्वार भी है।
विवेकशील मानव की प्रवृत्ति निरन्तर प्रगति की ओर होती है, वह अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ कदम बढ़ाता है। व्यावहारिक जीवन के गुणों के अभ्यास में परिपक्व होने पर वह आध्यात्मिक गुणों को धारण करने और अपनी आत्मिक उन्नति के लक्ष्य की ओर प्रयत्नशील होता है। इसके लिए वह श्रावक के व्रत धारण करता है। 'श्रावक' शब्द का निर्वचन
__ 'श्रावक' जैन धर्म का विशिष्ट शब्द है। इसका अर्थ भी कुछ अधिक गहराई लिए हुए है।
श्रावक शब्द की व्युत्पत्ति 'श्रु' धातु से हुई है, जिसका अर्थ है सुनना। जो श्रमणों से श्रद्धापूर्वक निर्ग्रन्थ प्रवचन को सुनता है और तदनुसार उस पर आचरण करने का प्रयास करता है, वह श्रावक है। 1. सम्मत्तदंसणाइं पडदिअहं जइजणा सुणेइय। सामायारी परमं जो खलु, तं सावगं वित्ति ॥
-समणसुत्तं, गाथा 301