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252 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
प्रस्तुत गुणों की विवेचना करने से यह स्पष्ट प्रतिभासित होता है कि इनमें से कुछ गुण तो केवल शरीर स्वस्थता सम्बन्धी है; जैसे अजीर्ण होने पर भोजन न करे और नियत समय पर सन्तोष के साथ भोजन करे (16वाँ और 17वाँ गुण), कुछ धर्म भावना तथा धर्माचरण से सम्बन्धित हैं (15वाँ गुण) और शेष व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन, उसके आचरण को उन्नत और समाजोपयोगी बनाने वाले हैं। 34वाँ और 35वाँ गुण व्यक्ति को अगली सीढ़ी अर्थात् गृहस्थधर्म पालन के लिए उपयुक्त भूमिका तैयार करता है। ___यद्यपि यह सत्य है कि मार्गानुसारी व्यक्ति की भूमिका प्राथमिक है, वह पूर्णरूप से नैतिक आदर्श का पालन नहीं कर पाता, किन्तु नीतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए अपने कदम तो अवश्य बढ़ाता है, नैतिकता का अभ्यास करता है और शनैः शनैः इस अभ्यास को दृढ़ से दृढ़तर करता चला जाता है।
उसका ध्येय धर्म साधना होता है, वही उसका लक्ष्य होता है, उसी की प्राप्ति के लिए वह प्रयत्नशील रहता है। इसी ध्येय की सिद्धि के लिए वह इन 35 गुणों द्वारा व्यावहारिक जीवन को अधिक से अधिक शुद्ध बनाता है।
नीति का लक्ष्य भी यही है। जैसाकि पश्चिमी विचारक श्री वार्डलॉ ने अपने कथन में व्यक्त किया है-नैतिकता धर्म का व्यावहारिक रुप है और धर्म नैतिकता का सैद्धान्तिक रूप। ___ आचार्य हेमचन्द्र ने भी कहा है-इन 35 गुणों को धारण करने वाला व्यक्ति गृहस्थ धर्म धारण करने के योग्य बनता है। इसका अभिप्राय यह है कि ये सद्गुण नैतिक जीव की आधारभूमि अथवा भूमिका रूप है। अन्य नैतिक गुण
उपरोक्त 35 गुणों के अतिरिक्त अन्य ग्रंथों में नीतिवान विवेकी सद्गृहस्थ के कतिपय अन्य गुण भी बताये हैं। ये गुण हैं
(1) अक्षुद्रता-विशाल हृदयता
1. Morality is religion in practice; Religion is morality in principle. ___-Ralph Wardlaw. 2. गृहिधर्माय कल्पते
-योगशास्त्र, 1/56