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________________ 246 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन लज्जा शब्द बहुत व्यापक है। इसके अभिप्राय को प्रगट करने वाला अंग्रेजी शब्द Shame है। शेम या लज्जा वह मानसिक संकोच है, जो किसी अनुचित अथवा निन्दित कार्य करने पर, गर्हित-कटु शब्द बोलने पर अथवा अशुभ भावों के मन में आने पर व्यक्ति अपने हृदय में अनुभव करता है तथा उस भाव की प्रतिच्छाया प्रमुख रूप से चेहरे पर और सामान्य रूप से सम्पूर्ण शरीर पर दृष्टिगोचर होती है। चेहरे की रंगत फीकी पड़ जाती है। मार्गानुसारी-नीति का पालन करने वाला व्यक्ति ऐसा कोई काम नहीं करता कि उसके समक्ष इस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न हो। लज्जा का विरोधी शब्द निर्लज्ज, बेशर्म है। आंखे फाडफाड़कर देखना, सभ्यजनों के बीज अट्टहास करना, किसी भी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का उपहास करना, स्त्री अथवा स्त्रियों की ओर ताकना, उन्हें घर-घूर कर पैनी नजरों से देखना-यह सब निर्लज्जता है, निन्दनीय हैं विवेकी व्यक्ति ऐसी निर्लज्जता नहीं करता, वह लज्जा का मूल्य जानता है। यदि कभी मन मे बुरे विचार भी आ गये, वचन से कोई अपशब्द निकल गया अथवा कायिक चेष्टा हो गई तो भी यदि लज्जा का भाव मन में है तो वह तुरन्त सम्भल सकता है, अपने आचरण को सुधार कर सभ्यजनोचित बना सकता है। इसी अभिप्राय से आचार्य ने मार्गानुसारी के लिए सलज्जता एक आवश्यक गुण बताया है। ___दया और सलज्जता का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है, लज्जावान व्यक्ति के हृदय में ही दया का निवास होता है। दया का अभिप्राय है-अनुकम्पा। किसी व्यक्ति की पीड़ा को स्वयं अपने हृदय में अनुभव करना, हृदय का कॉप जाना, दया का उत्स है। जो व्यक्ति लज्जावान होगा, वह अपने हृदय के अनुकम्पन को अनुभव करेगा और साथ ही उसके मन में भावना उमड़ेगी कि मैं समर्थ होकर भी इसे अभाव अथवा पीड़ा से मुक्त नहीं करता तो मेरे लिए लज्जा की बात है। लज्जा की यह भावना दया को प्रबल बनाएगी, और वह दया पालन में तत्पर होगा, क्रियाशील बनेगा तथा भरसक प्रयत्न करके उसकी पीड़ा मिटायेगा। दया सभी धर्मों का मूल है। जैन धर्म में तो दया को 'दया माता' कहा गया है। यह सभी जीवों की रक्षा करती है, माता के समान सभी प्राणियों का पालन-पोषण करती है, उन्हें सुख-साता पहुंचाते है, उनके जीवन में अभय की
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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