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244 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
जबकि दीर्घदर्शी भविष्य में आने वाली परिस्थितियों का समुचित विवेचन विश्लेषण करके आकलन करता है, अपनी स्थिति और सामर्थ्य को तोलना है और उचित समय पर उचित कदम उठाकर सफलता का वरण करता है ।
( 27-28 - 29 ) विशेषता, कृतज्ञता, लोकप्रियता'
विशेषता का अभिप्राय है - हिताहित का विवेक, अच्छाई और बुराई में विभेद करने की क्षमता ।
कृतज्ञता का अर्थ है - अपने प्रति किये हुए उपकार को विस्मृत न करना तथा उपकारी के प्रति विनम्र व समय आने पर उचित सहयोग की भावना
रखना ।
लेकिन कृतज्ञता व एहसान चुकाने के नाम पर नीति विरोधी, समाज व राष्ट्रविरोधी आचरण करना, कृतज्ञता नहीं है ।
व्यक्ति को व्यावहारिक जीवन में अनेक कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं, विरोधी परिस्थितियों में भी कुशलता, सूझ-बूझ से काम लेकर उचित उपाय खोजने पड़ते हैं, जिन व्यक्तियों के उपकार हैं, उनके प्रति विशेष नम्रता और विनय का व्यवहार भी करना पड़ता है । यह सब उसका कर्तव्य है । इन्हें किये बिना उसके जीवन में नैतिकता का प्रवेश नहीं होता ।
यदि वह अपने कार्यों में हिताहित का विवेक न रखे, अच्छाई-बुराई में से अच्छाई को न चुने, किये हुए उपकार को विस्मृत हो जाय तो समाज और परिवार की दृष्टि में उसे अपयश का भागी बनना पड़ता है, लोक में उसकी बदनामी होती है, अन्य व्यक्तियों की दृष्टि में वह गिर जाता है, सभी उससे दूर-दूर रहने की चेष्टा करते हैं ।
लेकिन कोई भी समाज में हेय नहीं बनना चाहता, सभी लोकप्रिय बनना चाहते हैं । मार्गानुसारी की भी लोकप्रिय बनने की इच्छा होती है। इसके लिए वह प्रयास भी करता है ।
लोकप्रियता प्राप्ति के लिए मानव सदैव से लालायित रहा है। वैदिक ऋषि देवताओं से प्रार्थना करता है कि मुझे सज्जनों का प्रिय बनाओ, मुझे सबका
1. Right step at right occasion with full zeal-Stevension (quoted by A. L. Srivastava : Akbar, The Great Mughal.
2. विशेषज्ञः कृतज्ञो, लोकवल्लभा ।
- योगशास्त्र, 1/55