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________________ 242 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन ( 24 ) व्रती और ज्ञानी जनों की सेवा' सेवा का आशय नीतिशास्त्रीय अवधारणा के अनुसार इस सन्दर्भ में स्वागत, सत्कार, सम्मान और सुख-शान्ति पहुंचाना है । विवेकी मार्गानुसारी व्यक्ति का कर्तव्य है कि जिन लोगों ने आंशिक अथवा पूर्णरूप से अहिंसा, सत्य आदि व्रत ग्रहण कर लिए हैं, पाप-प्रवृत्तियों का त्याग कर दिया है उन्हें यथासंभव समाधि पहुंचाये। क्योंकि जो उनको समाधि सुख-शांति पहुंचाता है, उसे भी समाधि (सुख-शांति) की प्राप्ति होती है । इसी प्रकार जो अधिक ज्ञानी है, जिनकी विचारधारा हिताहितविवेकअनुगामिनी हैं, उनको भी सुख-शान्ति पहुंचाना व्यक्ति का कर्तव्य है । व्रतधारी और ज्ञानी व्यक्तियों की सेवा और सुख-शांति पहुंचाने से समाज में भी इन प्रवृत्तियों के प्रति अनुकूल वातावरण बनता है, नैतिकता का प्रसार होता है, लोगों को नीतिपूर्ण आचरण की प्रेरणा प्राप्त होती है, समाज की सर्वांगीण उन्नति होती है, लोगों में सेवा की भावना उदित होती है । ( 25 ) उत्तरदायित्व निभाना नीतिशास्त्र में पलायनवाद को कोई स्थान नहीं है । इसके प्रत्येक प्रत्यय के साथ चाहे वह शुभ हो, शुद्ध हो अथवा आत्मस्वातंत्र्य हो, उत्तरदायित्व का प्रत्यय * जुड़ा हुआ है। अपने उत्तरदायित्व से पलायन करने वाला व्यक्ति कभी भी नैतिक नहीं हो सकता । मार्गानुसारी व्यक्ति जो व्यावहारिक नीति का पालन करने वाला होता है, कभी भी अपने उत्तरदायित्व से भागता नहीं । सामाजिक, राष्ट्रीय आदि जितने भी उत्तरदायित्व हैं, उनका समुचित रूप से पालन करता है । परिवार के सभी सदस्यों के प्रति अपना कर्तव्य निभाता है, जो आश्रित हैं उनका पालन करता है, बच्चों को उचित शिक्षा दिलाता है, उनका पालन-पोषण करता है, पत्नी का उचित सम्मान करता है, माता-पिता एवं वृद्धजनों की सेवा करता है, नौकर-चाकरों की जरूरतें पूरी करता है । 1. वृत्तस्थज्ञानवृद्धानां पूजकः । -योगशास्त्र, 1/54 2. समाहि कारणं तमेव समाहिं पडिलब्भइ । - भगवती सूत्र, 7/1 3. पोष्य पोषकः । - योगशास्त्र, 1/54 4. Concept of responsibility is de facto underlying in every ethical activity, be it good, ulimate good, self-independence. -Ethics of Morals. (quoted by Will Durant : Story of Philosophy)
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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