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जैन दृष्टि सम्मत-व्यावहारिक नीति के सोपान / 241 आधार पर उसके चरित्र का मूल्यांकन किया जाता है और निर्णय दिया जाता है अमुक व्यक्ति नैतिक है अथवा अनैतिक।
इसीलिए विवेकशील व्यक्ति ऐसा कोई आचरण नहीं करता जिसकी तत्कालीन समाज (देश-काल) में निन्दा हो, लोग उपहास करें। वह अपने आचरण को देश काल के अनुरूप रखता है।'
अनुरूप रखने का यह अर्थ भी नहीं है कि वह समाज में प्रचलित रूढ़ और हानिकारक परम्पराओं का अन्धानुकरण करता रहे। विवेकी सद्गृहस्थ उचित मर्यादाओं तथा परम्पराओं का पालन करता है। अपनी चर्या, आचरण
और व्यवहार देश-काल की परिस्थितियों के विपरीत नहीं रखता; क्योंकि इससे परम्पराचुस्त लोग व्यर्थ ही उंगली उठाते हैं, आलोचना और निन्दा करते हैं, और व्यक्ति को अपयश का भागी बनना पड़ता है। इससे वातावरण विक्षुब्ध हो जाता है, और उसको भी संक्लेश होता है। ऐसी स्थिति में उसकी नैतिक साधना भी सफलतापूर्वक नहीं चल पाती।
(23) सामर्थ्यासामर्थ्य की पहचान
व्यावहारिक जीवन बहुत ही उत्तरदायित्वपूर्ण होता है, व्यक्ति को पारिवारिक और सामाजिक परिवेश में अनेक प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं। उस समय उसे अपनी सामर्थ्य शक्ति का विचार करना आवश्यक है। उसे सोचना चाहिए-'मैं इस काम को पूरा कर भी सकूँगा या नहीं? कहीं यह काम बीच में ही तो नहीं छोड़ना पड़ेगा।'
लेकिन विवेकी और धर्मशील व्यक्ति काम को या तो हाथ में लेते ही नहीं और लेते हैं तो पूरा करके ही दम लेते हैं। क्योंकि अधूरा काम सदा ही दुखदायी और अपयश का कारण बनता है।
1. अदेशकालश्चर्या त्वजन्।
-योगशास्त्र, 1/54 तुलना करिए(क) यद्यपि शुद्धं, लोकविरुद्धं न करणीयं नाचरणीयम्।
(ख) While you are in Rome do as Romans do. (अंग्रेजी कहावत।) 2.जानन्नपि बलाबलम्।
स्त्र, 1/54 3. Things half done always brings grief, sorrow and defamation.