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234 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
भगवान महावीर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अज्ञानी व्यक्तियों की संगति नहीं करनी चाहिए क्योंकि उससे वैर व विवाद बढ़ता है।
इसीलिए आचार्य हेमचन्द्र ने सज्जनों की संगति करने की प्रेरणा दी है।'
क्योंकि संगति का प्रभाव बहुत गहरा पड़ता है इसीलिए लोकोक्ति है-जैसी संगत, वैसी रंगत। इसी बात को ध्यान में रखते हुए तथागत बुद्ध ने हीन चरित्र वालों की संगति का निषेध किया है।
संगति का मानव के व्यावहारिक और नैतिक जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। जैसी उसकी संगति होती है, उसी के अनुसार लोग उसे समझते हैं। एक पाश्चात्य विचारक ने स्पष्ट कहा है-तुम किसी व्यक्ति के बारे में जानना चाहते हो कि वह कैसा है-दुराचारी या सदाचारी; तो यह देखो कि वह कैसे लोगों की संगति करता है।
इन्हीं सब बातों का विचार करके मार्गानुसारी मानव को सदा सज्जन पुरुषों की संगति करनी चाहिए। (10) माता-पिता की सेवा
व्यक्ति के जीवन में माता-पिता का सर्वोच्च महत्वपूर्ण स्थान है। वे बालक के जीवन का निर्माण करते हैं। उसे सुसंस्कार देते हैं। बालक का जीवन उन्नत एवं सुखी बने इसके लिए अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग करते हैं। उचित पालन-पोषण, और योग्य शिक्षा द्वारा उसे सम्मानपूर्ण ढंग से नैतिक जीवन जीने में सक्षम बनाते हैं। __इस प्रकार माता-पिता का मानव के ऊपर बहुत उपकार होता है। इस उपकार के प्रतिफलस्वरूप पुत्र का कर्तव्य है कि वह माता-पिता की सेवा करे, उन्हें उचित और योग्य सम्मान दे। यही प्रेरणा आचार्य ने इस सूत्र द्वारा मार्गानुसारी को दी है।
1. अलं बालस्य संगेण, वेरं वड्ढइ अप्पणो।
-आचारांग सूत्र 2. कृतसंग सदाचारैः
-योगशास्त्र, 1150 3. (क) अंगुत्तर निकाय, 31316
(ख) जातक, 22 1541 1439 4- If you want to know about a man, whether he is good or bad,
watch his company. -Ethics in Practice. 5. मातापित्रोश्चपूजकः।
-योगशास्त्र, 1/50