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जैन दृष्टि सम्मत-व्यावहारिक नीति के सोपान / 233
(7-8) आदर्श घर
मार्गानुसारी सद्गृहस्थ घर में निवास करता है। उसे घर बनाना आवश्यक है, क्योंकि उसके साथ स्त्री-पुत्र, माता-पिता आदि परिवार भी होता है और सुख-सुविधापूर्वक जीवन-यापन के लिए धन आदि आवश्यक साधन भी। इन सबकी सुरक्षा के लिए वह अपनी सुविधा के अनुकूल गृह निर्माण करता है।
इस सूत्र में आदर्श घर कैसा होता है, यह बताया गया है। आचार्य ने कहा है कि-ऐसे स्थान पर घर बनाये जो न एकदम खुला है और न एकदम गुप्त ही हो, पड़ोस अच्छा हो और द्वार अनेक न हों।
आदर्श घर के निर्माण में स्वच्छ वायु तथा प्रकाश के निराबाध आवागमन का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है, क्योंकि यह दोनों स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। साथ ही घर की स्वच्छता भी जरूरी है। सफाई रखने से कीड़े-मकोड़े (क्षुद्र जीव-जन्तु) उत्पन्न नहीं होते तो व्यक्ति उनकी हिंसा से बचा रहता है। ___घर की सुरक्षा की दृष्टि से अनेक द्वारों का होना हानिप्रद है। यद्यपि व्यक्ति पूरा ध्यान रखता है, फिर भी असावधानीवश किसी द्वार की सांकल लगाना भूल जाय तो वहां से चोरों को आने का मार्ग मिल सकता है। यह भी हो सकता है कि चोर एक द्वार से घुसे और जब तक उसे पकड़ने का प्रयत्न किया जाय तब तक वह कोई बहुमूल्य वस्तु लेकर दूसरे द्वार से चम्पत हो जाय। इसलिए घर में अनेक द्वार नहीं रखने चाहिए।
गृह निर्माण में पड़ौस का भी बहुत महत्व है। यदि पड़ौसी संघर्षप्रिय हुए, असामाजिक तत्वों का आस-पास निवास हुआ तो व्यक्ति की शान्ति भंग होती रहेगी, वह सुख से नहीं रह सकेगा। (9) सदाचारी व्यक्तियों की संगति
संसार में विभिन्न प्रवृत्तियों के मानव हैं। कुछ सदाचारी हैं तो दुराचारी भी बहुत मिलते हैं। यह कहना अधिक उचित होगा कि सदाचारियों की अपेक्षा दुराचारियों की संख्या अधिक है। किन्तु मार्गानुसारी को सदा सत्पुरुषों की संगति करनी चाहिए।
1. अनतिव्यक्तगुप्ते व स्थाने सुप्रातिवेश्मिके।
अनेकनिर्गमद्वारविवर्जित निकेतनः ॥
-योगशास्त्र, 1149