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________________ जैन दृष्टि सम्मत-व्यावहारिक नीति के सोपान यह एक निश्चित तथ्य है कि व्यावहारिक जीवन की प्रामाणिकता, दक्षता, कुशलता ही आध्यात्मिक जीवन के लिए आधारभूत नींव बनती है। जिस व्यक्ति का व्यावहारिक जीवन दीर्घदृष्टि, अक्रूरता, सौम्यता आदि गुणों से ओत प्रोत नहीं होता उसके आध्यात्मिक जीवन में आत्मिक सद्गुणों के सुमन भी नहीं खिल सकते। उसके जीवन में न सुरभि का संचार हो पाता और न ही तेजस्विता और चमक आ पाती है। अतः धार्मिक अथवा नैतिक बनने के लिए व्यावहारिक अथवा सामाजिक बनना व्यक्ति के लिए पहली शर्त है। ___ जैन आचार्यों ने इस तथ्य को बहुत पहले ही समझ लिया था। इसीलिए उन्होंने व्यावहारिकता को कभी उपेक्षित नहीं किया। उन्होंने धर्म साधना में और यहां तक कि मोक्ष साधना में भी व्यवहार को उचित एवं महत्वपूर्ण स्थान दिया। वास्तविकता यह है कि नीति का सीधा और प्रत्यक्ष संबंध भी व्यवहार से ही है। यद्यपि यह सत्य है कि नीति का संचालन आत्मा' से होता है, किन्तु 1. फ्रायड ने इसे आत्म या नैतिक मन (Super Ego) कहा है। विद्वानों ने इसकी तुलना अंतःकरण से की है। फ्रायड के अनुसार यह आत्म अथवा नैतिक मन अहम् । (Id) पर शासन करता है। इसमें कठोर नैतिकता की भावना रहती है। यह अहम् को अनैतिक मार्ग पर जाने से रोकता है। -मूल प्रवृत्तियों का सामाजिक जीवन में स्थान, पृ. 157
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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