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________________ नैतिक आरोहण का प्रथम चरण / 225 उपसंहार जूआ, मांसाहार, मद्यपान, वेश्यागमन, शिकार, चोरी और परस्त्रीसेवन - यह सातों व्यसन प्रत्येक दृष्टि से हेय हैं, त्याज्य हैं । इनसे शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, समाज, राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्रीय - सभी प्रकार की हानि होती है । जूए से धन-नाश, मानसिक चिन्ता और मांसाहार से सभी सद्गुणों का नाश होता है । इसी प्रकार अन्य व्यसन भी अनैतिकता को बढ़ावा देते हैं । वास्तव में सुखी और शांत जीवन के लिए मनुष्य को सात्विक और व्यसनमुक्त जीवन अपनाना चाहिए । व्यसनमुक्त जीवन ही सात्विक जीवन होता है। ऐसा जीवन जीने वाला मानव ही शुभ दिशा- नैतिकता - नैतिक जीवन की ओर अग्रसर होता है । वर्तमान युग में आधुनिकता का प्रसार हो रहा है। इस आधुनिकता को एक शब्द में कहें तो फैशनपरस्ती कह सकते हैं 1 फैशन के बहाने नित नये व्यसनों की बाढ़ सी आ गई है । वेशभूषा, सौन्दर्य प्रसाधन, पहनने-ओढ़ने के ढंग, चित्रपटों के द्विअर्थी संवाद, कामुक नृत्य आदि जन-जीवन पर हावी होते जा रहे हैं। फैशनपरस्ती अथवा आधुनिकता व्यसनों की सीमा तक जा पहुंची है । ऐसे-ऐसे फैन्सी शो आयोजित किये जाते हैं, जहां वेश-भूषा से स्त्री-पुरुष की पहचान ही कठिन हो जाती है। सौन्दर्य-प्रसाधन क्रीम स्नो पाउडर आदि जीवन की अनिवार्यता बनते चले जा रहे हैं। जूए के भी नये रूप सामने आ रहे हैं। शराब का प्रचलन दिनों दिन बढ़ रहा है । अण्डे को आधुनिकता के रंग में रंगे लोग मांस मानने को तैयार नहीं है। चोरी, रिश्वत, कमीशन आदि समाज में नीचे से ऊपर तक फैल गये हैं। On (ऑन) की बीमारी सर्वत्र व्याप्त हो चली है; न किसी को लेने में झिझक, न देने में 1 कहा जा सकता है फैशनपरस्ती और व्यसन में गंठ जोड़ सा हो गया है। सादा जीवन, उच्च विचार का आदर्श केवल कहने भर को रह गया है; आचरण के लिए नहीं । अतः व्यसनमुक्त जीवन के लिए फैशनपरस्ती से भी बचना आवश्यक है तभी मानव नैतिकता की ओर अपने चरण बढ़ाने में सफल होगा।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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