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नैतिक आरोहण का प्रथम चरण / 221
तरीके कितने ही हों, नये अथवा पुराने किन्तु वास्तविक दृष्टि से विचार करने पर यह चोरी के ही विभिन्न रूप हैं जो हर युग में बदलते रहे हैं और नये से नये अस्तित्व में आते रहे हैं। चोरी के कारण ____ आधुनिक विद्वानों ने चोरी के प्रमुख 6 कारण बताये हैं-(1) बेकारी, (2) निर्धनता, (3) फिजूलखर्ची, (4) यशकीर्ति की लालसा, (5) स्वभाव या कुसंस्कार और (6) अराजकता।।
यद्यपि इन बाह्य कारणों से इन्कार नहीं किया जा सकता किन्तु चोरी का प्रमुख कारण है-लोभ, लालसा की उत्कट सीमा तक बढ़ा हुआ लोभ, ऐसा लोभ जो सन्तोष को पूर्णतया नष्ट कर चका होता है।
लोभ के कारण ही मनुष्य चोरी करता है। जो अपनी बुद्धि कुशलता और श्रमशीलता से धन कमाना नहीं चाहता अथवा कमा नहीं सकता, तथा विषयों में अतप्त और परिग्रह के संग्रह में आसक्त है ऐसा व्यक्ति ही चोरी जैसा बुरा कर्म करता है।
चोरी का व्यसन सभी प्रकार से बरा है। नैतिक शास्त्रों में इसे जघन्यतम बुराई (most evil concept) कहा गया है। यह व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को ही बरबाद कर देता है। चोरी का प्रभाव समाज, परिवार, राष्ट्र और सम्पूर्ण मानवता पर पड़ता है। सभी का चारित्रिक पतन हो जाता है, मानवता और सभी मानवीय गुण खतरे में पड़ जाते हैं।
अतः स्वयं अपने जीवन तथा मानवीयता की रक्षा के लिए चोरी का व्यसन त्याग देना चाहिए।
परस्त्रीसेवन
पर-स्त्री का अभिप्राय है पराई-दूसरे की अथवा दूसरी स्त्री। परस्त्री का अर्थ समझने के लिए आवश्यक है कि स्व-स्त्री के स्वरूप को समझ लिया जाय। स्व-स्त्री विधिवत् विवाहित स्त्री को कहा जाता है। जिसके साथ पंच-साक्षी या अग्नि साक्षी में पाणिग्रहण संस्कार हुआ है, वह स्व-स्त्री और उसके अतिरिक्त सबकी सब पर-स्त्रियां हैं, चाहे वे कुमारी हों, भोग-विलासी हों, 1. रुवे अतित्ते य परिग्गहमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुठिं। अतुठ्ठिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ -उत्तराध्ययन सूत्र, 32/29