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220 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
चोरी
चोरी, एक ऐसी प्रवृत्ति है, जो सभी समाजों , चाहे वे सभ्य हों अथवा असभ्य, निन्दनीय मानी गई है। चोर को सर्वत्र दुत्कार, तिरस्कार ही मिलता है। चोरी के विभिन्न रूप
चोरी, मालिक की आज्ञा अथवा अनुमति के बिना उसकी नजर बचाकर, किसी चीज को उठा लेना, अपने अधिकार में कर लेना, लूट-मार, उठाईगीरी, राहजनी, गाँठ काटना, ताला तोड़ना, डाकेजनी आदि सभी चोरी के विभिन्न रूप हैं। वस्तुओं, दस्तावेजों, महत्वपूर्ण संधिपत्रों आदि को विभिन्न देशों में पहुंचा देना, अथवा उन देशों से छिपे रूप में अपने यहां मंगग लेना तस्करी है। किसी वस्तु के क्रय-विक्रय में खरीददार को बताये बिना धन ले लेना भी चोरी है। ____ आज चोरी का मीठा नाम-रिश्वत, कमीशन या सुविधाशुल्क हो गया है।
प्रश्नव्याकरण सूत्र में चोरी के 30 सार्थक नाम गिनाये हैं, उनमें दूसरों के धन से अनुचित लाभ उठाना, पराये धन में आसक्ति रखना, खुशामद करके दूसरों से धन ले लेना आदि भी सम्मिलित हैं। इसे अनार्य व्यवहार और प्रियजनों में भेद करने वाला बताया है। इससे स्पष्ट है कि चोरी का क्षेत्र कितना व्यापक है।
सभ्यता के विकास के साथ-साथ चोरियों के नये-नये रूप सामने आ रहे हैं। सफेदपोश और सभ्य-शिक्षित जन भी चोरी के धंधे में लगे हैं।
वस्तुओं में मिलावट, सैम्पिल में बढ़िया माल दिखाकर घटिया सप्लाई कर देना, असली के बजाय नकल (duplicate) वस्तु दे देना, सरकारी टैक्स बचाने के लिए बही खातों (account books) में हेरफेर कर देना आदि सभ्य और सफेदपोश चोरियां हैं। ब्लैक (black) काला धन्धा, वास्तविक उचित मूल्य से अधिक मूल्य लेना, कृत्रिम अभाव (artificial shortage) दिखाकर कीमतों में बेतहाशा वृद्धि कर देना तो अब सामान्य बात ही हो गई है। अस्पष्ट आकर्षक भाषा में विज्ञापन छपवाकर लोगों को प्रभावित करके उनको ठगने का नया तरीका चल पड़ा है।
1. प्रश्नव्याकरण सूत्र, अदत्तादान आस्रव द्वार, सूत्र 10