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________________ नैतिक आरोहण का प्रथम चरण / 219 सामान्यतः यह समझा जाता है कि शिकारी वीर पुरुष होता है, वह सिंह आदि पशुओं का शिकार करके अपनी वीरता प्रदर्शित करता है। किन्तु पाश्चात्य विचारक सिनेका कहता है समस्त क्रूरताएं और कठोरताएं दुर्बलता में से जन्म लेती हैं। फिर शिकारी वीर होता ही कहां है, वह तो कायर होता है। वह छिपकर पशु पर अपने अस्त्र-शस्त्रों से घात करता है, बन्दूक से गोली दागता है। जो छिपकर घात करे वह कायर ही तो होता है। ___ कुछ व्यक्ति शिकार को मनोरंजन कहते हैं। किन्तु यह कैसा मनोरंजन कि दूसरे प्राणियों के प्राण ही ले ले। मनोरंजन तो वह है कि आप स्वयं भी प्रसन्न हों और दूसरों को भी खुशी बांटें। शिकारी जैसा व्यवहार अन्य पशु-पक्षियों के प्रति करता है वैसा ही व्यवहार यदि कोई उसकी सन्तान के साथ करे तो उसे पता चलेगा कि शिकार मनोरंजन का साधन है या बर्बादी का। __ शिकार स्वयं के लिए भी बड़ा दुःखदायी होता है। अगले जन्मों की बात जाने भी दें तो इस जन्म में भी शिकारियों को कटु परिणाम भोगने पड़े हैं। न राजा दशरथ तीर से श्रवणकुमार के प्राण लेते और न उन्हें पुत्र-वियोग में तड़प-तड़पकर प्राण छोडने पड़ते। कर्मयोगी श्रीकृष्ण के देहावसान का कारण भी जराकुमार की शिकारी वृत्ति थी। कितना अनर्थ किया है मानव की इस शिकार-लिप्सा ने। यह अनर्थकारी, घोरहिंसक, दूसरों को प्राणान्तक पीड़ा देने वाला शिकार व्यसन घोर अनैतिक है, पाप है। आचार्य वसुनन्दी के शब्दों में-मद्य, मांस आदि का दीर्घ काल तक सेवन करने वाला जितने महान पाप का संचय करता है उतने सभी पापों को शिकारी एक दिन शिकार करके संचित कर लेता है।' इसी कारण नैतिकता की ओर कदम बढ़ाने वाला व्यक्ति शिकार व्यसन का त्याग कर देता है। 1. All cruelty springs from hard-heartedness and weakness. -Seneca 2. महुमज्जमंससेवी पावइ पापं चिरेण जं घोरं। तं एगदिणे पुरिसो लहेइ पारद्धिरमणेण! -वसुनन्दी श्रावकाचार, 99
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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