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________________ 218 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन हैं-एक महल को जैसे स्वच्छ रखने के लिए नाली की जरूरत होती है, उसी प्रकार समाज को विशुद्ध रखने के लिए भी गणिकाओं (वेश्याओं) की जरूरत किन्तु यह बहुत ही भ्रामक तर्क है। मोंटीकार्लो, जोर्जिया टाउन आदि नगर-जहां वेश्याओं के निवास हैं, वहीं सबसे अधिक अपराध होते हैं। बाल-अपराधों एवं अपराधी बालकों का जन्म वेश्यालयों के आस-पास ही होता यूरोप एवं एशिया आदि सभी देशों में वेश्यालय अनैतिकता व सामाजिक-आर्थिक अपराधों के अड्ढे माने जाते हैं। तस्करी एवं जासूसी में भी इनका सबसे अधिक प्रयोग होता है। वेश्या समाज के लिए कलंक है और वेश्यागमन अनेक प्रकार की अनैतिकताओं को जन्म देता है। हत्या आदि अधिकांश अपराध वहीं सबसे अधिक होते हैं। वेश्यागामी व्यक्ति, चूंकि उसे वेश्या को प्रसन्न करने के लिए धन की अनिवार्य आवश्यकता होती है, ठगी, जालसाजी आदि अनैतिक कार्यों से धनोपार्जन करता है, चोरी भी करता है और इस प्रकार उसका जीवन अनैतिक बन जाता है, साथ ही वह समाज में भी अनैतिकता ही फैलाता है। वेश्या के सम्पर्क से वेश्यागामी व्यक्ति को कई प्रकार के यौन रोग लग जाते हैं, वे ही रोग उसकी संतानों में आते हैं और इस प्रकार उसका वंश ही रोगी हो जाता है, रोग के कष्ट से वह दुखी और पीड़ित होता है। आज के संसार में सबसे भयावह प्राणघाती रोग ‘एड्स' का सबसे मुख्य कारण वेश्यागमन ही है। इन्ही सब कारणों से वेश्यागमन पाप है, अनैतिक मार्ग है। शिकार क्रूरता का जघन्यतम रूप शिकार है। यह इन्सान के भीतर छिपा जंगलीपन है। यह मानव की क्रूरतम वृत्ति का विज्ञापन है। इसमें उसकी कठोरता ही उजागर होती है। 1. अभी कुछ समय पूर्व ही समाचार पत्रों में पढ़ा कि लन्दन में 13 वर्ष की लड़कियां भी वेश्यावृत्ति करने लगी हैं, वे स्कूल में पढ़ती हैं और फिर अड्डों पर जाकर वेश्यावृत्ति करती हैं, क्या यह सभ्यता व संस्कृति के घोर पतन का मार्ग नहीं है।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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