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________________ नैतिक आरोहण का प्रथम चरण / 217 हिंसा, आतंक, हत्या और लूट खसोट का जो भयावह त्रासदायी वातावरण बना हुआ है, उसका सबसे बड़ा मानसिक कारण शराब, मद्यपान है। प्रसिद्ध विचारक बेकन ने सच ही कहा है-संसार की समस्त सेनाएँ भी मानव-जाति को इतना नष्ट नहीं करतीं और न सम्पत्ति को बरबाद करती हैं, जितना कि मदिरापान नष्ट करता है और संपत्ति को बरबाद करता है। मदिरापान घोर अनैतिक है। यह मानव का सभी प्रकार से पतन करता है। अपराध का जनक होने से यह समाजनीति, धर्मनीति आदि की दृष्टि से त्याज्य है। मद्यपी के जीवन में कभी नैतिकता का प्रवेश नहीं हो सकता, चाहे वह कितना ही बड़ा विद्वान हो, उच्चकोटि की शिक्षा प्राप्त हो, सामाजिक अथवा राजनीतिक नेता हो। नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र तथा आचारशास्त्र सभी दृष्टियों से मदिरा व्यसन सर्वथा अनैतिक है पाप है, दुराचरण है। यह ऐसा दीवालिया बैंक है, जहां से बरबादी ही प्राप्त होती है। इससे जीवन सन्निपात के रोगी के समान हो जाता है, उसकी सारी प्रवृत्तियां अनर्गल होती हैं, वह अनुचित बोलता है, पागलों जैसे प्रलाप करता है। __ऐसे व्यक्ति को सभी ओर से तिरस्कार, दुत्कार ही प्राप्त होते हैं। वह अनैतिकता के गर्त में समा जाता है। वेश्यागमन वेश्या एक दीपशिखा के समान है, जिस पर पुरुष रूपी पतंगे मंडराते हैं और अपना धन, मान-मर्यादा आदि सब कुछ स्वाहा कर देते हैं और सभी प्रकार के साधन नष्ट हो जाने पर पंखरहित शलभ के समान भूमि पर गिर पड़ते हैं। प्रेम नाम की वस्तु वेश्या के हृदय में होती ही नहीं। उसका मात्र ध्येय धन-दोहन है। इसके साथ ही पुरुष के बल-शक्ति-इज्जत आदि का शोषण भी करती है और फिर उसे चूसे हुए आम की तरह सड़कों के कचरे पर फेंक देती __ यद्यपि वेश्याएं अनेक दुर्गुणों की खान हैं फिर भी कुछ पाश्चात्य विचारक (सेंट एक्वीनस, बालजाक, शापेनहावर, लेकी आदि) उनका पक्ष लेते हुए कहते 1. All the armies on earth do not destroy so many of the human race, nor alienate human property as drunkenness. -Becon
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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