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216 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
एक पाश्चात्य विचारक ने कहा है-जब मनुष्य मद्यपान करता है तो मदिरा के अन्दर जाने के साथ ही बुद्धि बाहर निकल जाती है।'
Sencea ने तो स्पष्ट ही कह दिया कि मद्यपान स्वेच्छया अपनाए हुए पागलपन के सिवाय कुछ नहीं है।
शराब का सबसे बुरा असर मस्तिष्क और हृदय पर पड़ता है, शरीर तो जर्जरित हो ही जाता है।
शास्त्रों में शराब के अनेक दुर्गुण और दोष बताए हैं, किन्तु इसका सबसे बड़ा दुर्गुण यह है कि शराबी प्रत्येक प्रकार का अपराध करता है, वह अपने होशो-हवास में नही रहता, अतः मार-पीट, दंगा-फसाद, चोरी, बलात्कार आदि सभी प्रकार के पाप कर सकता है, करता है।
मदिरा से मतवाले मानव को उचित-अनुचित के विवेक की तो बात ही दूर रही, वह साधु-संन्यासियों-तपस्वियों का भी अपमान कर देता है। द्वारका जैसी समद्ध नगरी के विनाश का कारण मदिरापान ही था। न यादव कुमार मदिरा के नशे में मतवाले होकर द्वीपायन ऋषि का अपमान करते, उन्हें पत्थर-ढेले मारते और न द्वीपायन ऋषि द्वारका भस्म करते।
इसी प्रकार रोम और यूनान की शक्तिशाली सभ्यताएं मदिरा की भेंट चढ़ गईं। और भी कई देश मदिरा की तरल आग में भस्म हो गये। देश में आज 1. When drink enters, wisdom departs. 2. Drunkenness is nothing else, but a voluntary madness. 3. वैरूप्यं व्याधिपिण्डः स्वजन परिभवः कार्यकालातिपातो। विद्वेषी ज्ञाननाशः स्मृतिमतिहरणं विप्रयोगश्च सद्भिः॥ पारुष्यं नीच सेवा कुल-बल-विलयो धर्मकामार्थहानिः। कष्टं वै षोडशैतेनिरुपचयकरा मद्यपानस्य दोषाः ॥ आत्मा को पतित करने वाले मद्यपान के 16 कष्टदायक दोष हैं(1) वैरूप्य (शरीर का बेडौल और कुरूप हो जाना) (2) व्याधिपिण्ड (शरीर का रोगों का घर हो जाना) (3) स्वजन परिभव-(परिवार में तिरस्कार) (4) कार्य करने में उचित समय चूक जाना, (5) विद्वेष उत्पन्न होना (6) ज्ञान का नाश (7) बुद्धि का नाश (8) स्मृति का नाश (9) सज्जनों से अलगाव (10) वाणी में कठोरता (11) नीच पुरुषों की सेवा (12) कुल की कीर्ति का नाश (13) बल का नाश (14-15-16) धर्म-अर्थ तथा काम की हानि।
-हारिभद्रीय अष्टकटीका 4. Habitual intoxication is the epitome ofevery crime. -Gerrold. 5. He that is drunkard qualified for all vices.
-Quarles 6. त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, नेमिनाथ चरियं, जैन महाभारत आदि