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________________ नैतिक आरोहण का प्रथम चरण / 215 मांसाहारी मानव अपराधी होता है। अपराधी, उन पशुओं के प्रति जिनका हनन और भक्षण वह करता है। चाहे, यह अपराध-बोध उसे न हो किन्तु अपराध तो अपना काम करता ही है, उसकी अपराधिनी आत्मा पतित होती है, उसकी प्रवृत्तियां निम्न से निम्नतम स्तर तक गिरती हुई पाप पंक में निमग्न हो जाती हैं। ___नैतिकता की दृष्टि से यह मानव के घोर पतन की-घोर अनैतिकता की स्थिति है। इसीलिए मांसाहार अनैतिक है, अपवित्र है और मानवता की दृष्टि से घृणास्पद है। इसी कारण इसे सभी विवेकीजनों ने त्याज्य बताया है। मद्यपान वे सभी द्रव्य (पेय पदाथ) जो बुद्धि को लुप्त कर देते हैं, ढक देते हैं, मद्य कहलाते हैं। इनमें मदिरा (wine) तो प्रमुख है ही किन्तु भांग, गांजा, अफीम, चरस, ताड़ी आदि की भी गणना मद अथवा नशीले पदार्थों में की जाती है। आजकल तो और भी नशीले पदार्थ प्रचलित हो गये हैं। जैसे-हैरोइन, ब्राउन सुगर, कोकीन आदि। इन सभी पदार्थों की यह विशेषता है कि मानव को कल्पना लोक में पहुंचा देते हैं, यथार्थ जगत से उसका सम्बन्ध तोड़ देते हैं और उसकी चेतना किसी दूसरे लोक की सैर करने लगती है। ___मदिरा तथा अन्य सभी नशीले पदार्थ मानवीय सद्गुणों को नष्ट कर देते हैं। सत्य का तो सत्यानाश हो ही जाता है; विवेक, ज्ञान, सत्य, शौच, दया, क्षमा सभी सदगण आग की चिन्गारी से घास के ढेर के समान जलकर भस्म हो जाते हैं बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है और क्रोध आदि अनेक संवेग तथा विभ्रम उत्पन्न हो जाते हैं व्यक्ति पागलों का सा प्रलाप करता है। -जीवनसुधार, पृ. 40 1. बुद्धिं लुम्पति यद् द्रव्यं मदकारि तदुच्यते। 2. मद्यपस्य कुतः सत्यम्? 3. विवेकः संयमो ज्ञानं, सत्यं शौचं दया क्षमा। ___ मद्यात् प्रलीयते सर्वं, तृण्या वन्हिकणादिव ॥ 4. मद्यपानाद् मतिभ्रंशो, नराणां जायते खलु। 5. मद्यपाने कृते क्रोधो, मान, लोभश्च जायते। मोहश्च मत्सरश्चैव दुष्टभाषणमेव च।। -योगशास्त्र, 3/16 -जीवन सुधार, पृ. 31 -मनुस्मृति
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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