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212 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
व्यसनों के सात प्रकार
जैनाचार्यों ने सात व्यसन बताये हैं-(1) जूआ सेवन (2) मांसाहार (3) मदिरापान (4) वेश्यागमन (5) शिकार (6) चोरी एवं (7) परस्त्रीसेवन।
इन सात व्यसनों के समान ही आधुनिक युग में कामोत्तेजक अश्लील पुस्तकों का पठन-पाठन, रोमांटिक-जासूसी उपन्यास, चलचित्रों के अश्लील दृश्य, बीड़ी सिगरेट, हैरोइन, ब्राउन सुगर, कोकीन आदि नशीली वस्तुएं भी अत्यन्त हानिप्रद हैं। नवयुवकों में तो इन नशीले पदार्थों की आदत व्यसन की सीमा तक पहुंच गई है।
___ वस्तुतः कोई भी आदत व्यसन तभी बनती है, जब व्यक्ति उसमें आकंठ निमग्न हो जाता है, डूब जाता है, लिप्त हो जाता है, उसे पाये बिना वह तीव्र बेचैनी अनुभव करता है।
ऐसी दशा, मनुष्य के लिए बहुत भयंकर होती है। अब हम जैन नीति में वर्णित सात व्यसनों का संक्षिप्त परिचय देंगे।
जूआ
जूआ, अल्प परिश्रम से अधिक धन प्राप्ति की इच्छा से जन्मा हुआ दोष है। मानव इसकी ओर इसी कारण आकर्षित होता है किन्तु यह ऐसी विषवेल है कि मानव के सत्व को ही चूस जाता है, उसे निर्धन बना देता है, घर परिवार, समाज, मित्र वर्ग की दृष्टि में गिरा देता है।
___ जूआ अनेक रूपों में खेला जाता है। प्राचीनकाल में यह पासों (अक्ष) चौपड़ आदि के रूप में, मुगल काल में शतरंज के रूप में खेला जाता था तथा आधुनिक युग में यह ताश के पत्तों द्वारा खेला जाता है।
रेस, लाटरी, सट्टा आदि भी जूए के ही विभिन्न रूप हैं। जूआ घोर अनैतिक कृत्य है, ऋग्वेद' तथा सूत्रकृतांगसूत्र में इसे त्याज्य बताया है। एक पाश्चात्य चिन्तक ने भी इसे लोभ का पुत्र और फिजूलखर्ची का जनक-जननी कहा है।
जूए से धन का नाश होता है। 1. अक्षैर्मादिव्यः।
-ऋग्वेद, 10/34/13 2. अट्ठाए न सिक्खेज्ज्जा।
-सूत्रकृतांग, 9/10 3. Gambling is the child of avarice, but the parent of prodigality. 4. जूए पसत्तस्स धणस्य नासो।
-गौतम कुलक