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नैतिक आरोहण का प्रथम चरण / 211
व्यसन का सीधा अर्थ भी यही है। यह शब्द दो के मेल से बना हैवि + असन । असन का अर्थ भोजन है। पूरे व्यसन शब्द का अर्थ हुआ-विकृत भोजन, विकृत वस्तुओं, आदतों को ग्रहण करना, उनमें लिप्त हो जाना। __ प्रसिद्ध पाश्चात्य विचारक ने व्यसन को बुरी आदतों में लिप्त हो जाना (Addiction to evil habits) कहा है और इसके लिए debauchery' शब्द दिया है। इस शब्द का वाच्यार्थ है-ऐसी आदतें जो व्यक्ति को शारीरिक रूप में अक्षम बनाती हैं, मानसिक कमजोरी लाती हैं, धन की हानि करती हैं और सद्गुणों का विनाश करती हैं।
वस्तुतः व्यसन वे विष वृक्ष हैं जो चारों ओर के वातावरण को जहरीला बना देते हैं। यह कीचड़ वाले ऐसे गड्ढे हैं जो आकर्षक पुष्पों से ढके हुए हों,
और जैसे ही कोई व्यक्ति लालायित होकर उन पुष्पों के पास जाता है तो दल-दल में ऐसा गहरा फंस जाता है कि उसका निकलना कठिन हो जाता है। अमरबेल के समान व्यसन जिस पुरुष रूपी वृक्ष से लिपटते हैं उसका सर्वनाश कर देते हैं। 1. William Geddie : Mid-Twentieth Century Version, p. 269 2. (क) जूअं मज्जं मंसं वेसा पारद्धि चोर परयारं।
दुग्गइ गमणस्सेदाणि हेउभूदाणि पावाणि ॥
वसुनन्दि श्रावकाचार में सप्तव्यसन पर प्रथम श्लोक (ख) द्यूतं च मांसं च सुरा च वेश्या, पापर्द्धि चौर्ये परदारसेवा।
एतानि सप्त व्यसनानि लोके, पापाधिके पुंसि सदा भवन्ति ।। (ग) वैदिक परम्परा में अठारह प्रकार के व्यसन माने गये हैं, जिनमें से 10 कामज हैं
और 8 क्रोधजन्य हैं। कामज व्यसन हैं-(1) मृगया (शिकार), (2) अक्ष (जुआ) (3) दिवास्वप्न-असंभव कल्पनाओं में उलझे (डूबे) रहना (4) परनिन्दा (5) परस्त्री सेवन (6) मद (7) नृत्यसभा (8) गीतसभा (9) वाद्य की महफिल (10) व्यर्थ भटकना। क्रोधज व्यसन हैं-(1) पैशुन्य (चुगली) (2) अतिसाहस (3) द्रोह (4) ईर्ष्या (5) असूया (6) अर्थदोष (7) वाणी से दण्ड और (8) कठोर वचन (परुषता) दशकाम समुत्थानि तथाऽष्टौ क्रोधजानि च। व्यसनानि दुरन्तानि यत्नेन परिवर्जयेत् ॥ मृगयाऽक्षो दिवास्वप्नः परिवादः स्त्रियो मदः । तौर्यत्रिकं वृथाऽट्या च कामजो दशको गणः ॥ पैशुन्यं साहसं द्रोह ईर्ष्याऽसूयाऽर्थदूषणम्।। वाग्दण्डजं च पारुष्यं क्रोधजोऽपि गणोऽष्टकः ॥