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________________ 206 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन यह गुण विश्वमैत्री का सूचक है। उसके हार्दिक उद्गार इन शब्दों में व्यक्त होते हैं-मित्ती से सव्वभूएसु मेरा संसार के सभी जीवों-प्राणियों के साथ मैत्री भाव हैं। मैत्री का भाव नैतिकता का आदर्श है। यह वैर-विरोध, संघर्ष आदि का शमन करके सुख-शांति की सरिता प्रवाहित करने में सक्षम होता है। __(8) प्रभावना-प्रभावना का अभिप्राय है-ऐसे कार्य करना जिससे धर्म संघ की उन्नति हो, महिमा बढ़े, कीर्ति का प्रसार हो, तथा समाज के अन्य व्यक्ति सी धर्म-मार्ग से प्रभावित हों, धर्म-पालन के लिए प्रेरित हों। ऐसी प्रभावना कई प्रकार से की जा सकती है। जैन परम्परा में 8 प्रकार के प्रभावक माने गये हैं-1 प्रावचनिक 2 धर्मकथिक 3 वादी 4 नैमित्तिक 5 तपस्वी 6 विद्यासिद्ध 7 रसादिसिद्ध और 8 कवि। वास्तव में धार्मिक व्यक्ति का जीवन सुगन्धित सुमन के समान होता है जो अपनी सौरभ से स्वयं तो महकता ही है, अन्य लोगों का जीवन भी सुगन्धित कर देता है। नैतिक जीवन में यह सभी गुण विशिष्ट भूमिका अदा करते हैं, इन को धारण करने से नैतिक जीवन में चमक आती है, नैतिकता की प्रगति होती है, सद्गुणों का विकास होता है, जीवन सुखी होता है। सम्यक्त्व के अतिचार अतिचार का अर्थ है दोष; ऐसा दोष जो सामान्य हो, मामूली हो तथा भूल से लग जाय। सम्यक्त्व के ऐसे 5 अतिचार हैं-1 शंका, 2 कांक्षा 3 विचिकित्सा, 4 मिथ्यादृष्टिप्रशंसा 5 मिथ्यादृष्टिसंस्तव । इन पांचों अतिचारों को सम्यक्त्व का मल भी कहा गया है। मल का अभिप्राय है जो सिर्फ मलित करे, नष्ट न करे; जिस प्रकार वस्त्र पर लगा मल 1. आवश्यक सूत्र 2. (क) शंकाकांक्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिशंसासंस्तवा सम्यग्द्दष्टेरतिचाराः । -तत्वार्थसूत्र, 7/18 (ख) संका, कंखा, विदिगिंछा, परपासंडपसंसा, परपासंडसंथवा। प्रतिक्रमण सूत्र, उपासक दशांग 1/7 नोट-पाखंड, अन्यदृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि-तीनों शब्दों का अभिप्राय समान है। यहां मिथ्यादृष्टि शब्द नीति की अपेक्षा 'अयथार्थ दृष्टिकोण' अभिधेयार्थ की अपेक्षा करके रखा गया है। -लेखक
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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