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सम्यग्दर्शन का स्वरूप और नैतिक जीवन पर उसका प्रभाव / 203
(3) निर्विचिकित्सा-चिकित्सा शब्द के दो अर्थ होते हैं-(1) धर्मकरणी के फल में सन्देह और (2) घृणा का भाव। अतः निर्विचिकित्सा का अभिप्राय है-अपनी धर्मकरणी के फल में सन्देह न करना और साथ ही सम्यग्दर्शनज्ञान-चरित्र की आराधना में लीन रहने वाले तपस्वी साधकों के मलिन वेश तथा देह से घृणा न करना। ___नीति के अनुसार किसी से भी घृणा करना अनैतिक प्रत्यय है और सन्देह तो अनैतिकता है ही। ____ अंग्रेजी में कहावत है-Hate begets hate (घृणा, घृणा को जन्म देती है)। वस्तुतः घृणा ऐसा मानसिक छूत का रोग है जो बड़ी तीव्र गति से फैलता है। एक व्यक्ति दूसरे से घृणा करता है, दूसरा तीसरे से, इस तरह यह चक्र फैलता ही जाता है और सारे मानव समाज में व्याप्त हो जाता है और इस कुप्रवृति से मानव षड्यन्त्रों, दुरभिसन्धियों के जाल में फंस जाता है, उसका नैतिक पतन हो जाता है।
घृणा से कितने संघर्ष और युद्ध हुए, अनेक उन्नत संस्कृतियां रसातल को चली गईं, मानव इतिहास इसका बोलता प्रमाण है।
(4) अमूढदृष्टित्व-मूढ़ता का अर्थ-अज्ञान, भ्रम, मिथ्या, विपर्यास है और दृष्टि का अर्थ है विश्वास । अमूढदृष्टित्व का अभिप्राय हुआ-ऐसा गुण जिसमें भ्रम तथा विपरीतता न हो।
दशवैकालिक सूत्र में कहा हैसम्मद्दिट्ठी सया अमूढे।
सम्यग्दृष्टि सदा अमूढ़ रहता है वह कभी मूढ़ताओं के चक्कर में नहीं फंसता।
मूढ़ताएँ कई हैं, उनका स्वरूप जानना उपयोगी होगा।
(1) देवमूढ़ता (रागी-द्वेषी देवों की उपासना), (2) लोकमूढ़ता (नदी स्नान आदि से आत्मशुद्धि मानना) (3) समयमूढ़ता (शास्त्र व धर्म के विषय में भ्रान्त धारणा), (4) गुरुमूढ़ता (निन्ध आचरण वाले पाखंडी साधुओं को साधु मानना (5) समाजमूढ़ता (समाज में प्रचलित अनर्गल रूढ़ियों को धर्मानुमोदित परम्परा के रूप में स्वीकार करना)।
इसी प्रकार और भी हजारों प्रकार की मूढ़तायें हो सकती हैं।
1. दशवैकालिक सूत्र, 10/7