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________________ घर ; (9) सदाचारी व्यक्तियों की संगति ; (10) माता-पिता की सेवा ; (11) उपद्रवग्रस्त स्थान का त्याग ; (12) निन्दनीय प्रवृत्ति का त्याग ; (13) आय-व्यय का सन्तुलन ; (14) वित्तीय स्थिति के अनुसार, वेशभूषा ; (15) धर्म श्रवण ; (16-17) आहार-विवेक ; (18) धर्ममर्यादित अर्थ-कामसेवन ; (19) अतिथि-सत्कार ; (20-21) अभिनिवेशिता और गुणानुराग ; (22) देश-कालोचित आचरण ; (23) सामर्थ्यासामर्थ्य की पहचान ; (24) व्रती और ज्ञानीजनों की सेवा ; (25) उत्तरदायित्व निभाना ; (26) दीर्घदर्शिता ; (27-29) विशेषज्ञता, कृतज्ञता, लोकप्रियता; (30-33) सलज्जता, सदयता, सौम्यता और परोपकार ; (34-35) विजय की ओर ; अन्य नैतिक गुण। 255-293 5. नैतिक उत्कर्ष श्रावण की आचार नीति ; 'श्रावक' शब्द का निर्वचन ; व्रत का स्वरूप ; श्रावक व्रत ; व्रतों के सम्बन्ध में सावधानियाँ ; अतिक्रम आदि ; व्रतग्रहण की विधि एवं मर्यादा ; अणुव्रत; अहिंसाणुव्रत; सत्याणुव्रत ; अचौर्याणुव्रत ; स्वदारसन्तोषव्रत ; स्थूलपरिग्रह परिमाण व्रत ; गुणव्रत ; दिशा परिमाण व्रत; उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत ; निषिद्ध व्यवसाय ; अनर्थदण्ड विरमण व्रत ; शिक्षाव्रत ; सामायिक ; देशावक्राशिक व्रत ; पौषध गोपवास व्रत ; अतिथि संविभाग व्रत। नैतिक उत्कर्ष के सोपान (श्रावक प्रतिमा); प्रतिमाओं का स्वरूप और विवेचन ; प्रतिमाओं की काल मर्यादाएँ और विशेषताएं ; एक विकल्प। 294-335 6. नैतिक चरम श्रमणाचार ; श्रमण शब्द की विशिष्टताएँ ; श्रमण के सत्ताईस गुण ; उत्सर्ग और अपवाद मार्ग ; श्रमण के
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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