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________________ खंड-2 जैन नीति के विभिन्न आयाम (Part-II) (Different Dimensions of Jaina Ethics) 1. जैन नीति का आधार : सम्यग्दर्शन 179-192 सम्यग्दर्शन का अर्थ ; मिथ्यात्व के भेद ; सम्यग्दर्शन का नीतिशास्त्रीय महत्व ; जैन धर्म में सम्यक्त्व का स्वरूप ; सम्यग्दर्शन का लक्षण ; नव तत्व ; जीव तत्व ; अजीव तत्व ; अन्य तत्व ; आस्रव, बन्ध और पाप हेय क्यों? ; संवर निर्जरा और पुण्य उपादेय क्यों? 193-209 2. सम्यग्दर्शन का स्वरूप और नैतिक जीवन पर उसका प्रभाव सम्यक्त्व की उत्पत्ति ; सम्यक्त्व का द्विविध वर्गीकरण ; रुचि की अपेक्षा दसविध वर्गीकरण ; सम्यक्त्व का पंचविध वर्गीकरण; सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण; सम्यक्त्व के पाँच लक्षण ; सम्यग्दर्शन के आठ अंग ; सम्यक्त्व के अतिचार ; उपसंहार। 210-225 3. नैतिक आरोहण का प्रथम चरण व्यसनमुक्त जीवन ; व्यसन क्या है ; व्यसनों के सात प्रकार ; जुआ; माँसाहार ; मद्यपान ; वेश्यागमन ; शिकार ; चोरी ; चोरी के विभिन्न रूप ; चोरी के कारण ; परस्त्री सेवन ; परस्त्रीसेवन के दोष और हानियाँ ; परस्त्री सेवन के कारण; उपसंहार। 226-254 4. जैन दृष्टि सम्मत-व्यावहारिक नीति के सोपान (1) न्याय सम्पन्न विभव ; (2) शिष्टाचार प्रशंसकता ; (3) विवाह सम्बन्ध विवेक ; (4) पापभीरुता ; (5) देश प्रसिद्ध आचार-पालनता ; (6) अनिन्दकत्व ; (7-8) आदर्श
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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