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________________ सम्यग्दर्शन का स्वरूप और नैतिक जीवन पर उसका प्रभाव / 201 सम्यग्दर्शन के आठ अंग जिस प्रकार मानव शरीर के आठ प्रमुख अंग होते हैं और वह इनकी प्रमाणोपेतता, सुन्दरता और सुगठितता से सुशोभित होता है; उसी प्रकार सम्यग्दर्शन के भी आठ प्रमुख अंग हैं और वह इनसे सुशोभित होता है। इन आठ अंगों को आचार भी कहा गया है और दर्शनाचार के रूप में ग्रंथों में वर्णित किये गये हैं। इन आठ अंगों के नाम हैं-(1) निःशंकता (2) निष्कांक्षता (3) निर्विचिकित्सा (4) अमूढदृष्टित्व (5) उपबृंहण (6) स्थिरीकरण (7) वात्सल्य और (8) प्रभावना। __इन आठों अंगों का परिपालन करना सम्यग्दर्शन की विशुद्धि और उसके संवर्द्धन के लिए अति आवश्यक है। (1) निःशंकता-शंका' अथवा संशयशीलता का एक ही अभिप्राय है-संदेह। धर्म अधर्म आदि जो सत्य तत्त्व हैं, उन तत्वों के स्वरूप एवं फल में शंका न करना, उन पर दृढ़ आस्था रखना निःशंकित अंग है। कुछ आचार्यों ने शंका का अर्थ भयवाची मानकर निःशंकता का अर्थ निर्भयता स्वीकार किया है। और एक आचार्य ने सन्देहरहितता तथा 1. (क) निस्संकिय-निक्कंखिय-निवितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उवव्रहण-थिरीकरणे-वच्छल्ल-पभावणे अट्ठ ॥ -उत्तराध्ययन सूत्र, 28/31 (ख) प्रज्ञापनासूत्र, पद 1 (ग) णिस्संकिद णिक्कंखिद-णिव्विगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उवगूइण ठिदिकरणं वच्छल्ल पहावणा य ते अट्ठ ॥ -मूलाचार, 201 और भी देखें-सर्वाथसिद्धि 6/24, वसुन्दरी श्रावकाचार, 48, पंचाशक (उत्तराध) 479-80 प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, सर्ग 4, श्लोक 32 से 61 तक, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक 11-18 आदि। 2. (क) तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहि पवेदित। -आचारांग, 1/5/5/163 (ख) शंका का अर्थ आचार्य कुन्दकुन्द ने भय किया है। देखें सम्मदिट्ठी जीवा णिस्संका होंति णिब्भया तेण। सत्तभयविप्पमुक्का, जम्हा तम्हा हु णिस्संका॥ -समयसार, गाथा 228 (ग) श्रुतसागर सूरि ने दोनों ही अर्थ स्वीकार किये हैं तत्रशंका-यथा निर्ग्रन्थानां मुक्तिरुक्ता तथा सग्रंथानामपिगृहस्थादीनां कि मुक्तिर्भवतिइति शंका। अथवा भय प्रकृतिः शंका। -तत्वार्थ, 7/23 वृत्ति (घ) मूलाचार 2/52-53
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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