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सम्यग्दर्शन का स्वरूप और नैतिक जीवन पर उसका प्रभाव / 195
रुचि की अपेक्षा दस विध वर्गीकरण
उत्तराध्ययन सूत्र में रुचि की अपेक्षा सम्यग्दर्शन के दस प्रकार बताये हैं
(1) निसर्ग रुचि-स्वभाव से ही, परोपदेश के बिना, स्वयं के ही यथार्थ बोध से जीव, अजीव आदि तत्वों की श्रद्धा निसर्ग रुचि है।
अथवा जिन भगवान के दृष्ट एवं उपदिष्ट भावों में तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव (इन चार निक्षेपों) से विशिष्ट पदार्थों के विषय में 'यह ऐसा ही है, अन्यथा नहीं है' ऐसी जो स्वतः स्फूर्त श्रद्धा है, वह निसर्ग रुचि है।
(2) उपदेशरुचि-अरिहन्त भगवान तथा आचार्य, मुनि आदि के उपदेश से होने वाली श्रद्धा रूप रुचि, उपदेश रुचि है।
(3) आज्ञा रुचि-जिनके राग-द्वेष, मोह और अज्ञान नष्ट हो गये हैं ऐसे जिनेश्वरदेव की आज्ञा से उनमें रुचि रखना।
(4) सूत्र रुचि-अंग प्रविष्ट और अंगबाह्य श्रुत के अवगाहन से होने वाली तत्वश्रद्धारूप रुचि।
(5) बीज रुचि-जैसे जल की सतह पर तेल की बूंद फैल जाती है, उसी प्रकार सम्यक्त्व के एक पद के तत्व बोध से अनेक पदों में फैल जाने वाली तत्व श्रद्धा रूप रुचि, बीज रुचि है।
(6) अभिगम रुचि-अभिगम अथवा अधिगम का अर्थ है विशिष्ट ज्ञान, उसके निमित्त से तत्व श्रद्धा रूप रुचि अभिगम रुचि कहलाती है।
अंग, उपांग, प्रकीर्णक तथा आगमानुसारी ग्रंथों का अध्ययन करने से रुचि अथवा श्रद्धा का उत्पन्न होना अभिगम रुचि है।
(7) विस्तार रुचि-प्रमाण और नयों से द्रव्यों तथा भावों को जानने से उत्पन्न हुई तत्वश्रद्धा रूप रुचि, विस्तार रुचि है।
(8) क्रियारुचि-दर्शन, ज्ञान, चरित्र, तप, विनय आदि के अनुष्ठानों में भाव से रुचि उत्पन्न होना, क्रिया रुचि है।
(9) संक्षेप रुचि-जो आर्हत प्रवचन में प्रवीण नहीं है, साथ ही जिस ने अयथार्थ दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं किया, कदाग्रही भी नहीं है, अल्पबोध से ही जो जीवादि तत्वों पर श्रद्धा रखता है, ऐसे व्यक्ति की श्रद्धा संक्षेप रुचि है। अथवा अल्पज्ञान से ही तत्वों पर यथार्थ श्रद्धा रखना संक्षेप रुचि है।
1. उत्तराध्ययन सूत्र, 28/17-27