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192 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
( 7 ) वचन पुण्य - वचन से गुणीजनों का कीर्तन करना, हित, मित, प्रिय, तथ्य, सत्य और पथ्य वचन बोलना ।
दूसरों
( 8 ) काय पुण्य - शरीर का शुभ व्यवहार, दूसरों की सेवा करना, का दुःख दूर करना, जीवों को सुख-शांति देना ।
( 9 ) नमस्कार पुण्य - बड़ों के प्रति आदर सत्कार और सभी के साथ विनम्रतापूर्ण मधुर व्यवहार करना ।
पुण्य के यह सभी प्रकार नैतिक दृष्टि से शुभ हैं, इनका समाज परिवार और पड़ौस पर अच्छा प्रभाव पड़ता है, अन्य लोगों को भी नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त होती है, नीति और नैतिकता का प्रसार होता है ।
इस प्रकार जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित नव-तत्व योजना धर्म दर्शन की अपेक्षा तो महत्वपूर्ण है ही; नीति, नैतिक प्रगति, सदाचार तथा व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में सुख शांति पहुंचाने वाली है ।
सम्यग्दर्शन का तो यह प्रमुख आधार ही है । इन तत्वों की यथार्थ श्रद्धा को ही सम्यग्दर्शन कहा जाता है।