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184 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
आगमसम्मत व्यावहारिक दृष्टि से सम्यग्दर्शन का लक्षण दो प्रकार से प्राप्त होता है - (1) देव - गुरु धर्म की श्रद्धा' और (2) सात अथवा नौ तत्वों का श्रद्धान । 2
देव का यहां सच्चे देव से अभिप्राय है - जिसका लक्षण इस प्रकार दिया गया है - जो सर्वज्ञ हो, रागद्वेष आदि विकारों को जिसने जीत लिया हो, जो तीनों लोकों द्वारा पूज्य हो और यथार्थ वस्तु स्वरूप का कथन करने वाला हो, ऐसे अरिहंत परमेष्ठी ही सच्चे देव हैं।
गुरु का लक्षण है - पाँचों इन्द्रियों को वश में करन वाले, नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्तियों को धारण करने वाले, चार प्रकार के कषायों से मुक्त तथा पंच महाव्रतों के पालक, ज्ञानादि पांच प्रकार के आचार को पालन करने में समर्थ, पंच समिति और त्रिगुप्ति से युक्त-यों 36 गुणों के धारक त्यागीजन मेरे गुरु
हैं ।
जिन ( वीतराग- अरिहंत परमेष्ठी) द्वारा कहा हुआ तत्व ही धर्म है । तथा यह अहिंसा, संयम और तप रूप होता है।' वह धर्म भवसागर ( संसार समुद्र) में डूबते हुए प्राणियों को बचा लेता है ।' दुर्गति में गिरते हुए प्राणियों को धारण करके रखता है 7, ऊपर ही उठाये रखता है तथा उत्तम सुख-यानी मुक्ति में पहुंचा देता है । वह धर्म अपनी आत्मा के अनुकूल होता है, समभाव रूप होता
1. अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो । पण्णत्तं तत्तं, इह समत्तं मए गहियं ॥
2. तहियाणं तु भावाणं सब्भावे उवएसेणं । भावेण सद्दहंतस्य, सम्मत्तं तं वियाहियं ॥ 3.. सर्वज्ञो जितरागादिदोषस्त्रैलोक्यपूजितः ।
- आवश्यक सूत्र
- उत्तराध्ययन सूत्र, 28 / 15
- योगशास्त्र, 2/4
यथास्थितार्थवादी च देवोऽर्हन् परमेश्वरः ॥ 4. पंचिन्दिय संवरणो तह नवविह बंभचेर गुत्तिधरो । चउविहकसायमुक्को, इअ अट्ठारस गुणेहिं संजुत्तो ॥ पंचमहव्वयजुत्तो पंचविहायारपालण समत्यो ।। पंच समिओ तिगुत्तो छत्तीसगुणो गुरुमज्झ ।। 5. धम्मो मंगलमुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो । 6. सो धम्मो जो जीवं धारेइ भवण्णवे निवडमाणं 7. दुर्गतौ प्रपतन्तमात्मानं धायतीति धर्मः । 8. धरत्युत्तमे सुखे ।
- आवश्यक सूत्र
- दशवैकालिक सूत्र, 1/1
- उपाध्याय यशोविजय : धर्मपरीक्षा
- दशवै, हारि. वृत्ति 1
- रत्नकरण्ड श्रावकाचार